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पंचपुबलक्खाई । आयंसगिहे पावइ केवललच्छि विगयरागो ॥४३८॥ विहरितु पुबलक्खं भरहो भरहस्स मज्झिमे खंडे। सित्तुंजसेलसिहरे संपत्तो सासयं ठाणं ॥४३९॥ इत्थ य पसंगपत्तो कहिओ रिसहाइवइयरो एसो । मरुदेविसामिणीए पगयं पुण रिसहजणणीए ॥४४०॥ भुवणच्छेरयभूया जमिमा तक्खणविसुद्धसम्मत्ता । पुबमपत्तसिवपहा अञ्चंत थावरा सिद्धा ॥४४१॥ तिविहे वि हु सम्मत्ते मरुदेवीसामिणीइ दिद्रुतो। भुवणच्छेरयभूओ कहिओ अह पत्थुयं सुणसु ॥४४२॥ इय तिविहंदू
सम्मत्तं खइयाइविभेयओ सदिद्रुतं । कहियं संपइ भद्दे ! भेए चउराइए सुणसु ॥४४३॥ खइयाइ सासणजुयं चउहा वेयग18| जुयं तु पंचविहं । तं होइ चरिमपुग्गलवेयणओ दसविहं तु इमं ॥४४४॥ निसंग्गुवंएसरुई आणारुई सुत्तबीयरुई मेव । अभि
गमवित्थाररुई किरियासंखेवैधम्मरुई ॥४४५॥ सक्किरियं कारगमिह तत्तरुई रोयगं तु सम्मत्तं । मिच्छट्टिी तत्तं तु दीवए टू शादीवयं तं तु॥४४६॥निच्छयओ सम्मत्तं विसुद्धचरणस्स अविरयस्सिअरं। अहवा वि दवभावाइभेयओ बहुविहं सम्मं ॥४४॥ 18|सवाई जिणेसरभासियाई वयणाई नऽण्णहा हुँति । इय वुद्धी जस्स मणे सम्मत्तं निच्चलं तस्स ॥४४८॥ सम्मत्तम्मि उ लद्धे | दिपलियपहुत्तेण सावओ हुजा । चरणोवसमखयाणं सागरसंखंतरा हुँति ॥४४९॥ इय अपरिवडियसम्मे सुरमणुए इगभवे च
सवाणि । इगसेणिवज्जियाई सिवं व सत्तट्ठभवमज्झे ॥४५०॥ सम्मत्तरयणममलं जायइ जीवस्स सुद्धहिययस्स । मिच्छत्त18 परिच्चाएण संपयं तं तओ सुणसु ॥४५१॥ आभिग्गहियमणाभिग्गहं च तह अभिनिवेसियं चेव । संसइयमणाभोग मिच्छत्तं दापंचहा होइ ॥४५२॥ अहवा दुविहं लोइयमिच्छं देवगयं गुरुगयं मुणेयचं । लोउत्तरं पि दुविहं देवगयं गुरुगयं चेव ॥४५३॥
चउभेयं मिच्छत्तं तिविहं तिविहेण जो विवजेइ । अकलंकं सम्मत्तं होइ फुड तस्स जीवस्स ॥४५४॥ कुणमाणो वि हु किरियं
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