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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इमो एवं ॥४०६॥ तायम्मि पूइए चकपूइयं पूयणाऽरिहो ताओ । इहलोइयं तु चकं परलोयसुहावहो ताओ ॥४०७॥ इय दाचिंतिऊण गंतुं मरुदेविं सामिणि भणइ इण्हिं । दंसेमि तुम्ह पुत्तस्स निरुवम इड्डिसकारं ॥४०८॥ इय वुत्तूर्ण जयकुंजरस्स खिंधम्मि ठविय मरुदेखि । पच्छासणे सयं पुण उपविट्ठो भरहनरणाहो ॥४०॥ पहुपायपणमणत्वं सबिड्डीए समं पुरजणेण । 81 नियपरिवारजुओ तह तुरियं संपढिओ तत्तो ॥४१०॥ रयणत्तयस्सरूवं माऊइ पुरो वियारमण्णं पि । साहंतो संपत्तो आसणं Gसमवसरणस्स ॥४१॥ भणइ य एए तियसा समिति अम्मो! समंतओ गयणे । किंकिणिरवमुहलविमाणवरगया जयगुरु समीवे ॥४१२॥ एसोय सुम्मइ सरो पहुस्स सद्देसणं कुणंतस्स । वाणीए जोयणगामिणीए अमयाओ महुरतरो ॥४१३॥ भयवं च साहइ तया सबो जीओ ममत्तदोसेण । बंधेइ मोहणीयं कम्मं तो भमइ भवमभियं ॥४१॥ सम्मत्तसंजुओ पुण जइ मुयइ ममत्तमखिलभावेसु । तो मुयइ जहण्णपए अंतमुहुत्तेण भवभावं ॥४१५॥ इय सोउं मरुदेवी अजस्समंसूणि मुयइ हरिसवसा। वासम्मि उवरए तणगिहं व गुरुबिंदुणो सुइरं ॥४१६॥ तेहिं पडतेहि लहु तीए नयणाण पुण्णजोगेण ।। सवा वि गया नीली सहसा सिद्धंजणेणं व ॥४१७॥ तोसा दुहा वि निम्मलनयणेहिं भरहसंसियं सवं । पच्चक्खं पहुरिद्धि ता हरिसिज्जइ पिक्खिऊण घणं ॥४१८॥ चिंतइ य एस लोगस्स मंगलं उत्तमो य सरणं च । परमप्पा परमगुरू परमं तत्तं इमो चेव ॥४१९॥ इय चिंतंती संकाइदोसरहिया समाइगुणकलिया। तिविहं पि दंसणं सा पत्ता पुबुत्तजुत्तीए ॥४२०॥ उल्लसि यजीवविरिया खाइयसम्मत्तचरणसंजुत्ता । घणघाइकम्ममुक्का संपत्ता केवलालोयं ॥४२२॥ विहरिय अंतमुहुत्तं जोगनिरोसदस०१६ हेण सेसकम्मखयं । काउं करिखंधगया मरुदेवीसामिणी सिद्धा ॥४२२॥ इय एस पढमसिद्ध त्ति तीइ देहं सुरेहि पूइत्ता। LOCALOROGRICORRCRARRECRECA For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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