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सुदंसणा- किंच-मुयनाणस्स समग्गस्स सारमाई च होइ सामइयं । तस्स वि आईइ इमो उ वण्णिओ पंचनवकारो॥१४७॥ तम्हा चरियम्मि दुवालसंगस्स सारभूओ इमो उ नवकारो। जं सासर त्ति गिज्जइ सबत्थ वि सबया वि इमो ॥१४८॥ जे के वि गया स्सरूवप्प
है मुक्खं जे वा गच्छंति जे गमिस्संति । ते सधे एयजुया एयविहूणा न उ कया वि॥१४९॥ एसो परमो मंतो एयं तत्तं जयत्तय-है रूवगनाम ॥८२॥
पवित्तं । सुयकेवली वि अंते सेसं मुत्तुं सरइ एयं ॥१५०॥ जिणसासणस्स सारो चउदसपुवाण जो समुद्धारो। जस्स मणे दसमुद्देसो। नवकारो संसारो तस्स किं कुणइ? ॥१५॥ एसो य पंचमंगलमहसुयखंधो महप्पभावो य। एयं चिय वरणाणं सुदंसणे! तेऽणुभूयफलं ॥१५२।। णाणेण पुण्णपावाई जाणिउं ताण कारणाई च । जीवो कुणइ पवित्तिं पुण्णे पावे उण निवित्तिं ॥१५३॥ पुण्णे पवत्तमाणे पायइ सग्गाऽपवग्गसुक्खाई । नारयतिरियदुहाण य मुच्चइ पावाओ विणियत्तो ॥१५४॥ ता णाणं निवा-|
णस्स कारणं वारणं च कुगईणं । सुमुणी वि नाणरहिओ न कया वि हु पायए मुक्खं ॥१५५॥ संविग्गपक्खिओ वि हु हैजह नाणी धरइ सुदिढसम्मत्तं । णाणविहूणो न तहा तिवतवचरणनिरओ वि ॥१५६॥ लद्रूण वि जिणदिक्खं जयणाऽजयणं
फुडं अयाणंतो। पवयणमणविक्खंता भमंति संसारकंतारे ॥१५७॥ अण्णाणी तिबतवं कुणमाणो वि हु विवेयपरिहीणो।
अंधुब धावमाणो भवावडे पडइ किं चुजं? ॥१५८॥ भवसयसहस्सदुलहं लब्भइ जिणदंसणं पि णाणेण । नरसुरणिबाण-18 है सुहं साहीणं जेण होइ धुवं ॥१५९॥ णाणं मोहमहंधयारलहरीसंहारसूरुग्गमो, णाणं दिट्ठअदिवइट्टघडणासंकप्पकप्पडुमो। णाणं दुजयकम्मकुंजरघडापंचत्तपंचाणणो, णाणं जीवअजीववत्थुविसरस्साऽऽलोयणे लोयणं ॥१६०॥ [ सहलविक्कीडिअं]
l ८२॥ ताणाणं दिताणं गिण्हताणं च मुक्खपुरदारं । केवलिसिरी सयं चिय णराण वच्छत्थले कुणइ ॥१६॥
SALAMACASSAGA
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