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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तहा - जे सयलजयं मुत्ताहलं व करयलगयं निरिक्खति । गहरिक्खचंदसूराइयाण जाणंति परिमाणं ॥ १६२॥ धाउवायरसायणअंजणसिद्धीओ सयलरिद्धीओ । जोइसनिमित्त गारुडपिसायसाइणिपमुहमंते ॥ १६३ ॥ कम्माण परिणईओ जीवाण गईओ कालसंखा य । णगपुढ विउयहिनइदहविमाणसुरसिद्धिपरिमाणं ॥ १६४ ॥ सरिसे वि मणुयजम्मे एयं सयलं पि केह कयरण्णा । जं जाणंति जए तं सुणाणदाणप्पभावेण ॥ १६५॥ ता जो पढइ अपुढं सया वि सो लहइ जिणवरिंदपयं । जो पुण पढावइ परं सम्मसुयं तस्स किं भणिमो १ ॥ १६६ ॥ जो उण साहिज्जं भत्तपाणवरवत्थपुत्थयाईहिं । कुणइ पढंताणं सो वि णाणदाणं पयट्टेइ ॥ १६७॥ किंच - जइवि हु दिवसेण पयं धरेह पक्खेण वा सिलोगद्धं । उज्जोगं मा मुंचह जइ इच्छह सिक्खिउं णाणं ॥ १६८ ॥ अण्णाणी वि हु पाणी बहुबहुमाणेण मासतुसउब । नाणम्मि उज्जमंतो लहइ लहुं केवलं गाणं ॥ १६९ ॥ णाणरयणस्सरुवं | एवं संक्खेवओ समक्खायं । वीयं दंसणरयणं सुदंसणे ! संपयं सुणसु ॥ १७० ॥ दंसणमिह सम्मतं तं पुण तत्तत्थसद्दहणरूवं । इगदुतिचउपणदसविहमहव तिहा कारगाईहिं ॥ १७१ ॥ एगविहं तत्तरुई | निसग्गुवएसओ य तं दुविहं । खइयं खओवसमिअं उवसमिअं च त्ति तिविहं तु ॥ १७२ ॥ मिच्छत्तस्स खएणं खाइयसम्म तु खवगढी । तुरिया इचऊसु गुणठाणगेसु तीए य पट्टवओ ॥ १७३॥ तत्थंतमुहुत्तेणं खवइ अणंताणुबंधिणो जुगवं । जइ पुषं बद्धाऊ तो कोइ वि ठाइ इत्थेव ॥ १७४॥ मिच्छत्तस्स च उदए बंधइ ऽणंताणुबंधिणो पुण वि । इय एसिं उचलणा उक्कोसं अट्टबाराओ ॥ १७५ ॥ बद्धाउगो वि को वि हु कुणमाणो खंडसेणिमखंडं । तो मिच्छत्तं मीसं सम्मं च खवेइ सुद्धमई For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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