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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणा- पुरसिट्ठी नियइ पुणो जह सुहडो रिउबलेण जुझंतो। सिजंससहिजेणं सुहेण विजयं समणुपत्तो ॥५९॥ तत्तो पहाय-हरयणत्तयचरियम्मि| समए णिवअस्थाणे कहंति ते सुमिणे । बुझंति न परमत्थं भणंति सबे वि किं तु इमं ॥६०॥ सेयंसकुमारस्स उ अब्भु- स्सरुवप्प. दओ को वि होहिइ अज । इय वुत्तुं णिवपमुहा मज्झण्हे नियगिहेसु गया ॥६॥ अह भयवं विहरंतो नीउच्चगिहेसु गय- रूवग नाम ॥७९॥ पुरस्संतो। सेयंसगिहे पत्तो जं से पुण्णोदओ पत्तो ॥६२॥ पासायतलगएणं पियामहो तिजयजंतुताणखमो । सेयंसकु- दसमुद्देसो। हमारेणं दिट्ठो सामी सगिहमिंतो ॥६॥ तं दर्दु परिचिंतइ एरिसरूवो मए कहिं कइया । किं वा वि दिट्ठपुबो न व? त्ति दासम्म न सुमरामि ॥६४॥ एवं ऊहापोहं तस्स करंतस्स मइसुयाऽऽवरणा । खओवसममुवगया पुचभवब्भासजोगेणं ॥६५॥ बहुभवजाईसरणं उप्पण्णं तस्स लहुयकम्मस्स । तो तेण इमं णायं जह एसो पढमतित्थयरो ॥६६॥ गहियवओ छउमत्थो संवच्छरमणसिओ विहरमाणो। भिक्खट्ठा मह गेहे संपत्तो मज्झ सुकएहिं ॥६७॥ तो सहसा उत्तरिउं उवरितलाओ जिणंतिए गंतुं । तिपयाहिणी करेउं वंदइ भूमिलियपंचंगो ॥६८॥ नियकेसकलावेणं पहुपायपमजणं कुणइ हिट्ठो। भत्तिब्भरनिन्भरंगो नियकम्मरयं अवणयंतो ॥६९॥ आणंदंसुपवाहेण पायसोयं पहुस्स पयडतो । पक्खालइ पावमलं अणेगभवसंचियं निययं ॥७०॥ उद्वित्तु पुरो ठाउं पिक्खइ मुहपंकयं तिजयगुरुणो । अणिमिसनयणो अमरुव हरिसपीऊसपाणपरो ॥७१॥ किमहं पहुणो अहुणा दलामि इय तस्स चिंतयंतस्स । कोसल्लकए पुरिसेहिं आणिया इक्खुरसकुंभा ॥७२॥ पहुणो पाणितलउडे पलुट्टए पुक्खलेण भावेण । अइपुक्खलो वि पहुपाणिपल्लवे पुण रसो माइ ॥७३॥ अच्छिद्दपाणिलद्धीइ न गलए ॥७९॥ कोसल्ल. प्राभृत। ASALASARMA NAACANCARECENERARG For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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