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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECRUGRAHEBARMER वहुए सिहा किंतु । आचंदमंडलं पि अचिंतसत्तिस्स जगगुरुणो ॥७४॥ पहुणो पढमे पारणगवासरे वासवा तहिं सवे । हरिहै सवसा संपत्ता सबिड्डीए सपरिवारा ॥७५॥ गंधोदगं च वुटुं वुट्ठाई दसद्धवण्णकुसुमाइं । तुढेहि सुरवरेहिं चेलुक्खेवो कओ तत्थ ॥७६॥ पहयाउ दुंदुहीओ गंभीरुद्दाममहुरसद्दाओ। घुटुं च नहयलम्मि अहोसुदाणं सुदाणं ति ॥७७॥ अद्धतेरसकोडी पडिया गयणाओ तत्थ वसुहारा । इय पाउन्भूयाई पंचदिवाई तम्मि खणे ॥७॥ ___ अवि य-भवणं धणेण भुवणं जसेण भयवं रसेण पंडिहत्थो । अप्पा निरुवमसुक्खे सुपत्तदाणं महग्घवियं ॥७९॥ | अद्दिस्साऽऽहारविही भयवं निच्चं पि मंसचक्खूणं । पारित्ता तत्थ तओ जहासुहं विहरइ महीए ॥८०॥ मिलिओ य तत्थ सयलो नयरजणो आगओ य सोमपहो । ते सवे सेयंसं बहु बहुमाणेण पुच्छति ॥८१॥ सेयंसकुमार! कहं अम्हाण | अदिट्ठमसुयपुबमिमं । पहुपारणगविहाणं तुमए नायं ति कहसु फुडं? ॥८२॥ सिजंसो भणइ अहं पहुणा सह हिंडिओ भवे अट्ठ। ते अज्ज जाइसरणेण सुमरिया तो मए नायं ॥८३॥ पुणरवि भणंति लोया कहसु तुम अप्पणो भवे सधे । जह पहुणो सह भमिओ तो भणइ इमो मुणह तुब्भे ॥८४॥ | धायइसंडे दीवे पुवविदेहेसु अत्थि वरविजओ । नामेण मंगलावई णंदिग्गामो तहिं रम्मो ॥८५॥ तत्थ य दारिद्दकुले छण्हं धूयाण उवरि सत्तमिया । धूआ जाया तीए नाम पि कयं न पियरेहिं ॥८६॥ निण्णामिय त्ति लोएहि जंपिया जीविया य अवसवसा । अह कम्मि वि पबदिने सा दटुं इन्भडिंभाई ॥८७॥ वरखजभुजजुत्ताई तो लहु सा गिहम्मि . पूर्णः। २ अपस्ववशा-पराधीना इति । RECACANCLOCACANCHAR For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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