________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir
+ SAMACARALLECT
क्खित्तं पिक्खइ विपुलमई पुण समग्गं पि ॥४२॥ जहण्णेणंतमुहुत्तं देसूणपुवकोडिउकोसं । जिणवजं ओहिविणा वि कस्स वेयं भविजा वि ॥४३॥ सुयकेवलिआहारगउजुमइउवसंतगा वि हु पमाया। हिंडंति भवमणतं तयणतरमेव चउगइया ॥४४॥ केवलणाणं पुण सबदवपज्जायगोयरमणंतं । सासयमसहायंतं भवत्थअभवत्थदुहभेयं ॥४५॥ अंतमुहुत्तजहण्णं पढम देसूणपुबकोडियरं । साईअपज्जवसियं अभवत्थं केवलं णाणं ॥४६॥ सवेसिं णाणाणं सुयणाणं चेव उत्तम जम्हा । सपरप्पयासगं दीवउव मूयाणि सेसाणि ॥४७॥ जं केवली वि भासइ तं खलु वायाइ तं च सुयणाणं । जाणतो वि हुजं मूयकेवली तरइ न कहेउं ॥४८॥ चिरकालब्भत्थेणं सुयणाणेण सरित्तु पुबभवे । सिजंसो इव जीवो सपरेसिं वि बोहओ होइ ॥४९॥ | तथाहि-नयरीह विणीयाए मरुदेवीनाभिणंदणो रिसहो । पढमणिवो पढमजिणो रजं चइऊण पबहओ ॥५०॥ मोणवयं पवण्णो परीसहे दुस्सहे वि सहमाणो । विहरइ महिं महप्पा निरविक्खो णियसरीरे वि ॥५१॥ न वि ताव जणो जाणइ का भिक्खा केरिसा वि भिक्खयरा । गिहमागयस्स पहुणो इय भिक्खं कोइ न हु देह ॥५२॥ किंतु बहुभत्तिजुत्तो वत्थाऽऽभरणाऽऽसणाइ कण्णाओ। सयणीयजाणवाहणपमुहाई ढोयए मूढो॥५३॥ इय एवं विहरंतो पाणाऽसणविरहिओ अदीणमणो । वरिसंते संपत्तो सामी सायं गयपुरम्मि ॥५४॥ पुरवाहिं उजाणे निसाइ पडिमं ठिओ उसहसामी। तम्मि पुरे सोमपहो बाहुबलिसुओ कुणइ रजं ॥५५॥ तस्स सुओ सेयंसो कुमरो तीए निसाइ सयणगओ । पच्छिमजामे पिच्छइ सुमिणमिणं उल्लसिरसेओ ॥५६॥ जह मेरुगिरी सामलवण्णो दडे मिलायमाणपहो । अमयकलसेण सित्तो मए तओ सोहिउँ लग्गो ॥५७॥ सोमप्पहो उ पिक्खइ जह सूरो पडियरस्सिओ जाओ। सेयंसेणं रस्सीहि जोइओ तो स दिप्पेइ ॥५८॥
*****SAISISTA
सुर्दस०१०
For Private and Personal Use Only