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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SCREES सुदंसणा-1 मई पुण ताओ विक्किणइ रायपहे ॥११२४॥ पयईइ निधियारा जणइ वियारे जणाण परमेसा । सिसिरो वि सयं तवणो विजयकुचरियम्मितिलोयमवि तावए सययं ॥११२५॥ मारसरूवद्रा भणियं च-मुद्धाण नाम हिययाई हरंति हत:, नेवस्थपत्थणगुणेण नियंविणीओ । छेया पुणो पयइचंगिमराजणिज-17 प्परूवग॥६७॥ दक्खारसो न महुरिजइ सक्कराए ॥११२६॥ [वसंततिलका] अह अण्णदिणे दीवंतराओ पत्तेण पोयवणिएण । दिवा य नाम अट्ठदेहिलेणं तओ य सा मयणवसगेणं ॥११२७॥ भणिया तुह पुप्फाणं विच्छित्ती का वि सुंदरि ! अउवा । ता मह इमाणि मुद्देसो। सवाणि सुयणु! मुल्लेण देयाणि ॥११२८॥ अण्णत्थ न गंतवं कत्थइ सो देइ समहियं मुलं । सा वि हु धणलोभेणं पइदियह देइ तस्सेव ॥११२९॥ अह अण्णया य भणिया सीलमई तेण पावकम्मेण । मयणाउरेण सीलम्मि निच्चला हरिउकामेण ॥११३०॥ जइ एहि जाणवत्ते महऽत्तणए तो बहूण पुप्फाण । सिग्धं पि विक्कओ होइ साऽवि तस्थेव संपत्ता ॥११३१॥ हतीए सुद्धसहावाइ जाणवत्ते मुणालविल्लहला । पक्खित्ता बाहुलया पुप्फाण समप्पणनिमित्तं ॥११३२॥ अइदुट्ठसहावेणं चढाविया तेण जाणवत्तम्मि । संवरिया नंगरया सहसा ताडाविओ य सिढो॥११३३॥ चालेऊण अबल्लाई पिल्लियं पाणिम्मि तं वहणं । आयण्णाऽऽयडियचावमुकवाणुग्गवेगेणं ॥११३४॥ पत्तं पभूयजोयणपमाणमाणम्मि जलहिमज्झम्मि । इत्तो य गिहे द कुमरो पियाइ मग्गं पलोएइ॥११३५॥ जाव न पत्ता ताहे गवेसिया तेण तत्थ सबत्थ। अनियंतेणं कहिओ मालागारस्स वुत्तंतो ॥११३६॥ तेण वि चउक्कचच्चरठाणेसु गवेसिया पयत्तेण । तत्तो य नयरबाहिं निरूविया जाव न हु दिट्ठा ॥११३७॥ ताहे| १ स्वकीये। २ विडहल० कोमल । ३ नौकाखेपनेके उपकरणविशेष। ४ आयडिया आकृष्ट । CROSAGARLSALCASEASESAR For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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