SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गच्छसि कइया वि अदिट्ठदुहलेसा? ॥११११॥ इय असमंजसवयणाणि पलवमाणाणि ताणि पियराणि । संठावियाणि कह कहमवि मंतिवग्गेण महुरगिरा ॥१११२॥ सो विहु कुमरो वच्चइ सिसुसुयजुयकलियसीलमइकलिओ । अमरिसविहुरियहियओ अखंडियपयपयाणेहिं ॥१११॥ गच्छंतो संपत्तो कोडीसरवणियसयसमाइण्णे। दंसणपुरम्मि वेलाउलम्मि धणकण यपउरम्मि ॥१११४॥ तत्थ परिचयविरहाओ किमवि गेहाइयं अयाणतो । पविसइ पाटलयाऽभिहमालायारस्स गेहम्मि M॥१११५॥ सोऊणं पाडलओ पगइभद्दओ दुत्थिए दयालू य। सगुणप्पिओ पसंतो परोक्यारिकरसिओ य ॥१११६॥ भणियं हीच तेण चिट्ठसु मह गेहे होइ कम्मवसगाणं । विसमो दसाविभागो जियाण को विम्हओ भद्द ! ? ॥१११७॥ 1 जओ-चंदस्स खओ नहु तारयाण रिद्धी वि तस्स न हु ताणं । गुरुयाण चडणपडणं इयरा पुण निच्चपडियत्ति॥१११८॥ चिटुंति तत्थ मणयं सुहेण परमासि दविणजायं जं । आभरणाई कालेण भक्खियं तो विसण्णाई ॥१११९॥ पाइलएणं भणियं ववसायविवज्जियाण किं दइवो। कत्तो मुहम्मि पाडइ ? ता किं पि करेह ववसायं ॥११२०॥ कुमरेणुत्तं भो भद्द ! भणसु जं किं पि किच्चमम्हाणं । तेणाऽवि भणियमुच्चिणिहि मज्झमलएगदेसाओ॥११२२॥ पुप्फाणि कुणह विक्कयमेवं निबहह निबियप्पेणं । जुत्तमिमं ति कुमारो कुणइ तयं चिंतिऊण इमं ॥११२२॥ जह जह वाएइ विही नवनवभंगेहि निट्ठरं पडहं। धीरा पसण्णवयणा नचंति तहा तहा चेव ॥११२३॥ तप्पभिइ कलाकुसलत्तणेण कुमरो विचित्तमालाओ। गुंथइ सील अमरिस. अमर्ष-असहिष्णुता। २ मझया भाराम । सुर्दस०१२ For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy