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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥९३२॥ दुण्णि वि वग्गंति घणं दुण्णि वि पहरंति पयडियपहावा । दुण्णि वि रोसाऽरुणनयणवयणविक्खेवदुप्पिक्खा ॥९३३॥ है अह सो खणंतरेणं निद्दयनरवइपहारजजरिओ। मुच्छानिमीलियच्छो पडिओ धरणीइ कावाली ॥९३४॥ इत्थंतरम्मि विप्फु-16 रियतणुपहापडलपयडियदियंता । चवलतरचरणरुणरुणिरनेउराऽऽरावरमणीया ॥९३५॥ विलसंतविविहभूसणविभूसियाऽसेस-17 दिग्गहाऽवयवा । ठाऊणं निवपुरओ भणिउं देवी समाढत्ता ॥९३६॥ नरसिंहनरिंद! तए भई विहियं जमेस कावली । खत्तियकुलखयकरो जिणिओ जगडिअजगजणोहो ॥९३७॥ तो तुट्ठा तुज्झ अहं महप्पभावेण तुह सुओ होही। विक्कमसारो ठावरकेउसुमिणसूहयगुणकर्डप्पो ॥१३८॥ एवं होउ त्ति भणितु भणइ भूवो वई वि किह एस । खत्तियखयसंजणओ भणिओ। भवईट कहसु इमं? ॥१३९॥ ती उत्तमिमो पोअणपुरेसरो वीरसेणनामनियो । रणमल्लरिउनिवेणं रज्जाओ भंसिओ नट्ठो| ॥९४०॥ पुहईपरिव्भमंतो पए पए परिभवं लहंतो सो। नियजीवियनिविण्णो भइरवपडणं समारद्धो ॥९४२॥ कहवि महाकालेणं जोगायरिएण वारिओ मरणा। तेणं चेव य दिण्णं तह कावालियवयमिमस्स ॥९४२॥ तइलुक्कविजयमंतो दिण्णो गुरुणा मरंतएण तहा । तह अत्तरनरवइसएण जावो समाइट्ठो ॥९४३॥ जहणेण कलिंगाइसु बहुया लक्खणजुया निवाई हणिया। देवीइ तीइ सवं नरसीहनिवस्स तह कहियं ॥९४४॥ इयकावालियवइयरमायण्णिय देवयाइ परिकहियं । राया | सुयलाभपहिमाणसो अह गओ सगिहे ॥९४५॥ आरूढो जा सिजं चंपयमाला अहाऽऽगया तत्थ । जंपइ सनम्मवयणंठा अहो! हु सुहिओ जणो सुयइ ॥९४६॥ पुढे रण्णा सुंदरि! विसेसओ संपयं किमागमणं । अवरं च किंपि हु पिए! हरिसिसुदंस० ११ ते , 'झुणझुणिर' इत्यपि पाठः। २ जगडिय० कदर्थित। ३ कडप्प० कटप्र-समूह इति । ४ व्रती अपि । MOREGAOREGALSACREASURGEST For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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