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सुदंसणाचरियम्मि
॥ ६० ॥
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पि होइ पडिकूलकम्मवसा ॥ ९९६ ॥ ता देव ! दुयं कीरउ पत्थुयकज्जम्मि संपइ जत्तो। एवं पि जइ न सिज्झइ कज्जं पुरिसस्स को दोसो ? ॥ ९१७॥ परमम्हमभिप्पाओ इह संपइ पहु ! कुओ वि संपत्तो । नियविण्णाणमहागुणविम्हावियसयलनयरिजणो ॥ ९२८ ॥ एसो महत्पभावो घोरसिवो नामओ महावइओ । सो पुच्छिज्जउ पत्थुयपओयणे एस अम्ह मई ॥ ९१९|| तो | रण्णा घोरसिवो सदावेऊण सायरं पुट्ठो । भयवं ! कत्तो तुम्मे इहाऽऽगया पत्थिआय कहिं ? ॥ ९२० ॥ स भणइ इहाऽऽगओऽहं संपइ सिरिपवघाउ नरनाह ! | गंतवं पुण जालंधरम्मि उत्तरपहे इत्तो ॥ १२१ ॥ पुणरवि भणियं रण्णा दससु नियसत्तिबिलसियं किंचि । तो तेण दंसियाई थंभणआगिट्टिमाईणि ॥ ९२२ ॥ राया भणइ किमिमेहिं वालकीलावणेहिं किल अम्हं । तं कुणसु किं पि जेणं सुयलाभो होइ न भयवं ! ॥ ९२३ ॥ तेणुत्तमिमं कित्तियमित्तं मह किंतु मंतसिद्धीए । होसु सहाओ अह तं रण्णा अंगीकयं सहसा ॥ ९२४ ॥ तो किन्हचउदसिदिणे खग्गगहिओ कावालिएण नियो । पत्थुयकज्जनिमित्तं पत्तो भीसणमसाणम्मि ॥ ९२५ ॥ आलिहिय मंडलं सो सकलीकरणं विहाणओ काउं । नियमतं घोर सिवो थिरासणो जविउमारद्धो ।। ९२६ ॥ भणिओय नियो तेणं हत्थसयाओ परेण चिट्ठ तुमं । करवाल करो मा एस सबहा तं अवाहरिओ ॥ ९२७ ॥ राया तहेव रहिओ कालविलंबं महंतमाकलिओ । सणियं तप्पिट्ठीए समागओ सुणइ से जावं ॥ ९२८ ॥ हुंफुडुसाहु त्ति हुणामि नरवई इय निसामिडं रण्णा । सो हकिओ दुरप्पा रे रे पुरिसो हवसु इहि ॥ ९२९ ॥ तत्तो स कूरचित्तो कावाली कोवजलणपज्जलिओ । विष्फुरियतरलजमजीहसच्छहं कत्तियं कुडिलं ॥ ९३०॥ काऊण दाहिणकरे निव्भंछइ भिउडिभीमभालयलो । रे रे तं रायाऽहम ! कुणसु सुदिहं मणुयलोयं ॥ १३१ ॥ तत्तो पयडपरक्कमपदंड भुयदंड पहरणरउद्दा । जुज्झेण संपलग्गा ते कावालियमहीवाला
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विजयकुमारसरूव
प्परूवग
नाम अट्ठ
मुद्देसो ।
॥ ६० ॥