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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणाचरियम्मि ॥६१॥ SASHURSEENCE यहिययव दीसिहिसि? ॥९४७॥ ताहे पयडियविणया जोडियकरसंपुडा भणइ देवी । आगमणकजमेयं पह! अवहियमाणसो विजयकुसुणसु ॥९४८॥ अज मए रयणीए समुस्सिओ सरलवंसविक्खाओ। विलसंतजयपडाओ कलकिंकिणिसहसवणसुहो॥९४९॥ मारसरूव. सयलजणाणंदयरो महल्लसोहिल्लदसणमहग्यो।धम्मनिही परमधओ तुमं व सुमिणम्मि सच्चविओ ॥९५०॥ ताहे सुहसुमिण-3 प्परूवगसमुन्भवंतरोमंचकंचुइयतणुणा । भणियं रण्णा सुंदरि! सुहजणओ सुमिणओ एस ॥९५१॥ अम्ह कुलकेउभूयं पुत्तं पसवि-16 | नाम अदुहिसि सुंदरि! नवण्हं । मासाणमुवरिअझुट्ठमाणराईदियाणं च ॥९५२॥ सो वि चउजलहिपजंतमहिमहिलाइ नायगो होहिइ। मुद्देसो। दुबारवइरिकरिकुंभदलणखरनहरपंचमुहो॥९५३॥ सा वि हु सोउं पियवयणमेरिसं भत्तुणो मणोदइयं । हरिसाऽऽऊरियहियया 8 बंधइ वत्थे सुमिणगंठिं ॥९५४॥ जह नरवइणा तह सुविणपाढएहि वि वियारिए सुमिणे । चंपयमाला परितुद्वमाणसा गब्भमुबहइ ।।९५५||गब्भप्पभिईदिवसाओ बहमाणम्मि तइयमासम्मि । चिंतइ चंपयमाला देवी दोहलयगुणवसओ॥१५६॥ विविहेहि पयारेहिं जइ पूयं आयरामि देवाणं । आणंदियमणवित्ती करेमि भत्तिं गुरुयणस्स ॥९५७॥ वियरामि विविहसुहभक्खभोजवत्थाइएहि वत्थूहिं । दीणाईणमहं जइ दाणं अनिवारियप्पसरं ॥९५८॥ सवणाऽमयसरिसाई परिणामसुहाइ निघुइकराई। निसुणेमि गुरुसयासम्मि जइ अहं धम्मसत्थाई ॥९५९॥ तत्तो मणोरहन्भहियवित्तवियरणगुणप्पयारेणं । रण्णा दोहलए पूरियम्मि पडिपुण्णदियहेसु ॥९६०॥ पणयजणमणवियप्पियपसत्यसंपयसमप्पणप्पवणं । कप्पमहीरुहभूमिब कप्पपायवमणप्पगुणं ॥९६१॥ चंपयमाला पसवइ पुत्तं पुण्णप्पभावओ रणो। नियतणुकतिकडप्पप्पभावपज्जोइयदियंतं ॥९६२॥ ॥६१॥ १ तदा। SASSASSAX*XALASANAYSA For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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