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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त अणिटुचिट्टे !न याणसि मुरुक्खे!। रायसिरिं माणेउं न मुणसि निवइस्स पडिकूला ॥६०६॥ ता नियदुच्चरियफलं सहसु त्ति |पयंपिरीहि कूराहिं। सहसत्ति ताहि छिण्णं सअंगयं तीइ बाहुजुयं ॥६०७॥ हा ताय! माय! किमियं ? ति मुच्छिया निवडिया धणिवठे। कह कहवि लद्धसण्णा कलावई विलविउं लग्गा ॥६०८॥ हा दिव! कीस मज्झं एवं कुविओऽसि निग्धिणो होउं । जेण अतक्कियमेवं करेसि अइदारुणं दंडं? ॥६०९॥ किं नस्थि तुज्झ गेहे मए समा काऽवि बालिया पाव! जेण न याणसि निद्धं हयविहि ! दितो दुहमणिहूँ ॥६१०॥ हा अजउत्त! जुत्ता असंमिक्खियकारिया न ते विउणो। दहिही अहियं । हिययं अणुतावो नाह! तुह विउणो ॥६११॥ जाणंतीए न कओ नाह! मए तुज्झ विप्पियलवो वि । अण्णाणकए पिययम! न हु जुत्तो एरिसो दंडो ॥६१२॥ कण्णेजवेण केणवि सिटुं तुह किं पितं न याणामि । सद्दहसु मा हु सुमिणंतरे वि सीलस्स; | मालिण्णं ॥६१३॥ खणरत्तखणविरत्ता नारी पडिवण्णपालगा पुरिसा । एसा वि जणपसिद्धी विवरीया अज्ज संजाया ॥६१४॥ इय विलवंती सहसा नईतीरे वणनिगुंजमज्झम्मि । सा दारयं पसूया देवकुमारोवमं देवी ॥६१५॥ दहण तस्स रूवं कलावई बाहुछेयणसमुत्थं । पसवप्पभवं च दुहं म्हुसिउं हरिसिया जाया ॥६१६॥ आवयगयं पि सुहयइ हासइ गुरुसोग-18 | गहियहिययं पि। मरमाणं पि जियावइ सुपुत्तसंजीवणी जीवं ॥६१७॥ भणइ य पुत्त ! सुजायं होजसु दीहाउओ सुही सययं । वच्छ! करेमि किमण्णं वद्धावणयं तुह अहण्णा? ॥६१८॥ अह सो तडप्फडंतो लग्गो लुढिउं सुओ नईसमुहो।। कहमवि तं चलणेहिं धरिओ अकंदिउं एवं ॥६१९॥ हा! हा! कयंत! निग्घिण! तुद्रोऽसि न इत्तिएण किं पाव!? । दाऊण १ मूर्खे!। २ असमीक्षितकारिता-साहसकर्म इत्यर्थः। ३ कणेजपेन-पिशुनेनेत्यर्थः । ५ विस्मृत्य । For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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