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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणाचरियम्मि ॥ ४९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहावा एसा ससंभमा रहवरं समारूढा । तेणाऽवि चोइया तक्खणेण तुरया पवणजवणा ॥ ५९२ ॥ कित्तियदूरे राया ? सुंदरि ! एसेस अग्गओ जाइ । एवं जंपंताई ताई रण्णम्मि पत्ताई ॥ ५९२ ॥ ताव पहाया रयणी विमलीभूयाई दिसिवहुमुहाई । रायाण| मपिच्छंती आउलहियया भणइ देवी ॥ ५९३ ॥ हा निक्करुण ! किमेयं न य दीसइ इत्थ कत्थई राया ? । उज्जाणं पि न दीसइ विलविया कीस तुमएऽहं ? ॥ ५९४ || सुबइ य न तूरवो न जणरवो किं तु रण्णमेयं ति । सुमिणमिणं ? मइमोहो ? किमिदयालं ? कहसु सर्व्वं ॥ ५९५ ।। इय बहुविहप्पलावं देविं दीणत्तमागयं दहुं । निक्करुणो वि सकरुणो न तरइ पडिउत्तरं दाउं ॥५९६ ।। ओयरिय रहाउ तओ पुरओ कयकरयलंजली होउं । सोयभररुद्धकंठो रुयमाणो भणिउमादत्तो ॥ ५९७॥ हद्धी धिरत्थु पावो देवि ! अहं सच्चमेव निक्करुणो । जेणेरिसम्मि कज्जे निओइओ हयकयंतेणं ॥ ५९८ ॥ सो देवि ! वरमजाओ | पावयरो पावचिट्ठिओ दुट्ठो । सेवोवज्जियवित्ती धरेइ जो जीवियं पुरिसो || ५९९ ॥ जुज्झइ जणएण समं विणिवायइ भायरं | सिणिद्धं पि । सेवयसुणओ वरओ पहुणा सह विसइ जलणं पि ॥ ६००॥ ओयरिय रहवराओ ता निविससु इत्थ सालछायाए । एसो रायाssएसो अण्णं भणिउँ न पारेमि ॥ ६०१ ॥ विज्जुनिवाय भहियं तत्रयणं सुणिय मुणियतत्तत्था । ओयरमाणी मुच्छावसेण धरणिं गया देवी || ६०२ ॥ इयरो वि रहं घित्तुं रुयमाणो चेव पडिगओ नयरं । पत्ता चिरेण कह कहवि चेयणं अह | पुणो देवी ||६०३ || जा चिट्ठइ रुयमाणी अइकरुणं कुल्हरस्स सरिऊण । ता पुवनिउत्ताओ पत्ताओ पाणविलयाओ ॥ ६०४ ॥ कत्तियकराहि ताहिं कोवुब्भडभिउडिभंग भी माहिं । पञ्चक्खर क्खसीहि व भणियमिणं भीसणं वयणं ॥ ६०५ ॥ हा ! दुट्ठे पाविट्टे !! १ हाधिक- खेद इति । पितृगृहम् । ३ श्वपचमहिलाः । For Private and Personal Use Only विजयकु मारसरूव प्परूवग नाम अड्ड मुद्देसो । ॥ ४९ ॥
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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