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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणाचरियम्मि ॥ ५० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुत्तरयणं पुणो वि जं हरिउमारद्धो ॥ ६२० ॥ संभंता भइ इमा भद्दे ! नइदेवि ! दीणवयणाए । दुहियाइ असरणाए निद्दो| साए सुणसु वयणं ॥ ६२१|| जइ जयइ जए सीलं निम्मललीलं कलंकियं न मए । ता दिवनाणनयणे ! कुण बालयपालणोवायं ॥ ६२२ ॥ इय करुणं कंदंती कारुण्णगयाइ सिंधुदेवीए । सोहणतरबाहुलया निरुया य कया खणेणेसा ॥ ६२३|| दिपभावेण इमा अणुहविरी तणुसुहं अणणुभूयं । करयलजुएण घित्तुं बालं संठवइ अंकम्मि || ६२४|| संपइ किमहं काहं ? ति जाव सा चिंतइ भउभंता । तावसमुणिणा केणइ ता दिट्ठा पुण्णजोगेण ॥ ६२५ || करुणाइ तेण नीया कुलवइपासम्मि तेण वृत्तंतं । सा पुट्ठा असमत्था कहिउं तो तेण भणियमिणं ॥ ६२६ ॥ को इत्थ निश्च्चसुहिओ ? कस्स व लच्छी अखंडियच्छाया ? । कस्स व सुधिरं पिम्मं ? कस्स व खलियं न संजायं ? ॥ ६२७॥ तो धीरत्तणमवलंबिऊण वच्छे ! इहं निययवच्छं । पालेह ताव| सीमज्झसंगया नियपिउगिहि ||६२८|| इय धीरविया संती कलावई तावसीण मज्झगया । चिट्ठइ सुहंसुहेणं पालती अत्तणो तणयं ॥ ६२९ ॥ इत्तो य ताहि मायंगियाहिं केउरकंकणजुयाओ । नेऊण दंसियाओ बाहाओ ताओ नरवइणो ॥६३०॥ जयसेणकुमारस्स उ नामं दद्दूण अंगएसु निवो । चिंतइ महाअकज्जं रभसवसा ही मए विहियं ॥ ६३१ ॥ न य पच्चक्खं दिट्टं न सुयं न य पुच्छि यं मए सम्मं । कुवियप्पकप्पणाहिं अहह ! ! कहं विनडिया देवी ? ॥ ६३२ ॥ तो वाहरित पुट्ठो गयसिडी संखराइणा सिग्धं। इह देवसालनयराओ संपयं आगओ कोइ ? ॥ ६३३|| तेणुत्तं मम गेहे कले चिय आगया | पहाणनरा । देवी आणयणत्थं न तुम्ह मिलियाऽणवसरुति || ६३४|| सद्दाविऊण रण्णा किमेयमंगयजुयं ? ति 'वृत्ता । १ अनुभवित्री । For Private and Personal Use Only | विजयकु मारसख्वप्परूवग नाम अट्ठ मुद्देसो । ॥ ५० ॥
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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