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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir ॥४६॥ सदसणा-INसावयधम्म च सुविसुद्धं ॥५०१॥ समयम्मि सुगुरुपासे संविग्गमणो स वीरभद्दजिओ । पब पडिवण्णो अकलंकी विजयकुचरियम्मिापालिऊण वयं ॥५०२॥ सुरलोए संपत्तो भोत्तु भोगाई तत्थ दिवाई। तत्तो चुओ चरित्ता चरणं लहिही स निवाणं ॥५०॥5 मारसख्वतिविहो वि दाणधम्मो भद्दे ! तुह साहिओ मए एवं । विवरियसिवसुहलीलं संपइ सीलं निसामेह ॥५०४॥ प्परूवगनियकुलनयलममलं सीलं सारयससिब धवलेइ । सीलेण य जंति खयं खिप्पं सबे वि दुरियगणा ॥५०५॥ जाइकुलरू- नाम अडहावबलसुयविजाविण्णाणलच्छिरहिया वि । सबत्थ पूणिज्जा निम्मलसीला नरा लोए ॥५०६॥ जाइकुलरूवबलसुयविज्जावि- मुद्देसो। दणाणलच्छिसहिया वि । पावंति नेव ठाणं सबत्थ वि सीलपब्भट्ठा ॥५०७॥ लब्भइ सीलेण कुलं सीलन कुलेण पायड होइ । तम्हा सीले सिवसुहनिबंधणे आयरं कुणह ॥५०८॥ तं पुण सीलं दुविहं देसे सबे य होइ नायब । देसे गिहीण दसणमूलाणि दुवालसवयाणि ॥५०९॥ साहूण सबसील सीलांगट्ठारससहस्सा जं । बुझंति निरइयारा जावज्जीवं अवि-13 स्सामं ॥५१०॥ ता कायबा भत्ती साहूण विसुद्धसीलवंताणं । नियसत्तीए य तहा पालेयवं सया सीलं ॥५११॥ तत्थ वि उस्सग्गेणं सुसावओ धरइ निम्मलं सीलं । पालइ पदिणेसु च काऊण सदारसंतोसं ॥५१२॥ अहवा वि ससत्तीए एगेगविहायभेयपडिभिण्णं । नरयपुरनिविडदारं परदारं चयइ पुण निच्चं ॥५१३॥ लहुकम्मा गुरुसत्ता पवित्तसीला कलावइब |जिया । पावंति पुण्णवंता कित्तिं च सुहं च सुगई च ॥५१४॥ ___तहाहि-अस्थित्य भरहवासे देसे सिरिमंगले सिरीनिलए । संखुजलगुणजणयाविराइयं संखउरनयरं ॥५१५॥ तं ॥४६॥ विवरिय० विवृत-विख्यात । २ विहाय. विधा-प्रकार इति । For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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