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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिवालइ पबलप्पयाववलदलियसयलपडिवक्खो। असंखगुणनिवासो संखो नामेण नरनाहो ॥५१६॥ अह अण्णया कयाई अत्थाणगयस्स तस्स नरवइणो । गयसिढिसुओ दत्तो पडिहारनिवेइओ पत्तो ॥५१७॥ नमिय निवं उवविट्ठो पुट्ठो रण्णा चिराओ किं दिट्ठो?। स भणइ दिसिजत्ताए गओ चिरेणऽज इह पत्तो ॥५१८॥ भणियं निवेण भो दत्त ! किं तए तत्थ | दिट्ठमच्छरियं? । भणइ इमो ऽहं पत्तो कयाइ पहु! देवसालपुरे ॥५१९॥ तत्थ मए जं दिटुं अच्छरियं तं न सक्कए वुत्तुं । इय भणिय चित्तफलयं निदंसियं तेण नरवइणो ॥५२०॥ रण्णा निरिक्खिऊणं पुट्ठो तं कहसु का इमा देवी? । सो भणइ |इमा देवी पहु! न हु किं पुण? इमा मणुई ॥५२१॥ रण्णा भणियं ता कहसु का इमा कण्णगा? किमभिहाणा। दत्तेणुदत्तमिमा पहु! कलावई नाम मह भइणी ॥५२२॥ कहमेयं ? ति निवुत्ते भणइ इमो देव! सत्थपुरओऽहं । वच्चामि चोरसंकाइ मग्गसोहणकए जाव ॥५२३॥ ताव मए मग्गतडे पडिओ मयतुरगपिट्ठिदेसठिओ। अमरकुमारुब नरो कंठाऽऽगयजीविओ दिट्ठो॥५२४॥ पवणप्पयाणपयपाणमोयगाईहि विहियसजतणू। पुट्ठो स मए कत्तोतं पत्तो? कह व वसणमिमं? ॥५२५॥ सो है भणइ देवसालनयराओ अहं इहं समाणेउं । विवरीयसिक्खतुरएण पाविओ एरिसं वसणं ॥५२६॥ तुम्भे वि भणह कत्तो कत्थ व संपद्वियत्थ? तेणुत्ते । भणियं मए गमिस्सं संखउरा देवसालपुरं ॥५२७॥ तो दोवि सत्थसहिया पवरसुहासणगया | पुरो जंता । पिक्खंति तक्खणेणं चउरंगदलं समुहमितं ॥५२८॥ जा खुहिओ सत्थजणो पढियं एगेण बंदिणा ताव । जयइ जयसेणकुमरो विजयमहारायअंगरुहो ॥५२९॥ दटुं विजयनरिंदं कुमरो वि सुहासणाओ उत्तरिउं । पणमइ मए समाणं नियजणयं जणियगुरुहरिसो॥५३०॥ जयसेणकुमारेणं भणियमिणं ताय ! सत्यवाहेणं । जीवाविओऽमि अहयं दत्तेणिमिणा | S For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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