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तीइ फलयं समप्पियं तस्स। तेण वि लिहिया हंसी रायसुया दट्ठमिय भणइ ॥३९॥ अंतब्भावपयासगमिमीइ आलेहकोस-18 लमउर्छ । उअ अहो! हंसीए दिट्ठी नणु बाहजलभरिया॥३९५॥ सिढिलमुणालाचंचू सिढिला गीवा मिलाणयं वयणं । सिढिला पक्खा उप्पडणअक्खमा खलु सुलक्खा य ॥३९६॥ सुण्णमवत्थाणमिणं, किं बहुणा ? अकहिया वि एईए । विरहाऽऽकुला | अवत्था सयं पि नजइ सुहेण अहो ? ॥३९७॥ विणयवइ ! इच्चिरं ते कलाविऊ दरिसिया न मे एसा?। तो भणइ वीरभद्दो, नाऽऽणीयाऽहं गुरूण भया ॥३९८॥ रायसुया भणइ इमीइ नाम किं सहि ! ? तओ भणइ एसो । वीरमई मे नामं ति | वुत्तु ताओ गया सगिहं ॥ ३९९॥ निच्चं पि तत्थ तेणं, वच्चंतेणं तु इत्थिरूवेणं । वीणापमुहकलाहिं, रायसुया रंजिया बाढं ॥४०॥ गिहमागओ य पिउणा, भण्णइ तं वच्छ! इच्चिरं कत्थ । चिट्ठसि ? जमहं न तेरेमि उत्तरं दाउ लोयाणं ॥४०॥ तो तेण तं सरूवं कहिउँ मा ताय ! तं भयं कुणसु । निबंधे पुण रण्णो, मण्णिज विवाहमवि तीए ॥४०२॥ अह | निवसहाइ वत्ता, जाया जह इत्थ संखसिट्ठिगिहे । को वि वररूवगुणवं, संपत्तो तामलित्तीओ ॥४०३॥ भणइ निवो ता होही, पवरवरो एस नणु मह सुयाए। अणुरूवजोयणेणं तह विहिणो नूण निउणत्तं ॥४०४॥ अह तेण रायधूया, एगंते जंपिया कयाइ इमं । एरिसरूवाइगुणा, वररहिया चिट्ठसि किमेवं? ॥४०५॥ सा भणइ जं न लब्भइ वरोऽणुरूवो तओ वरेणाऽलं! । वरमुबसा वि साला, तक्करभरिया न उ कया वि ॥४०६॥ तो भणइ वीरभद्दो भद्दे ! दंसेमि तुह वरं उचियं । |सा जंपइ जइ सच्चं, ता लहु दंसेसु तं मज्झ ॥४०७॥ तो तेण जुवइरूवं मुत्तूण पयडियं च तं रूवं । तो आह इमा परिणसु
, विलोकन करो इसअर्थमें अव्यय । २ न शक्नोमीत्यर्थः। ३ उद्धसा-उजद ।
मुदंस०८
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