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वे प्रकारे प्रमाणकाल हे-१ दिवसप्रमाण अने २ रात्रिप्रमाण. चार पोसिप्रिमाण दिवस अने चार पोरिसीप्रमाण रात्रि होय छे. १.
जे जे प्रकारे नारकादिना भेदवडे आयु:-कर्मविशेष ते यथायुः, तेनुं रौद्रादि ध्यान विगेरेथी निवृत्ति-बांधवं, तेना संबंधथी जे काल एटले जीवोनी नारकादि स्वरूपे जे स्थिति ते यथाय:निवृत्तिकाल, अथवा जेवी रीते आयुष्यनी निर्वृत्ति छे तेवी रीते जे काल नारकादिना भवमा रहे छे ते यथायुःनिईत्तिकाल छे. आ काळ पण आयुप्यकर्मना अनुभवविशिष्ट सर्व संसारी
जीवोना वर्तनादिरूप अद्धाकाल ज छे. कथु छ के| आउयमेतविसिट्ठो, स एव जीवाण वत्तणादिमओ।भन्नइ अहाउकालो, वत्तइजोजच्चिरंजेणं ॥५८॥
____ अद्धाकाल ज यथायुष्ककाल कहेवाय छे. शुं समग्र अद्धाकाल यथायुष्क छ ? एम नहिं, परंतु जीवोनो नारकादि आयुविशिष्ट वर्तनादिमय यथायुष्ककाल कहेवाय छे, ते पोते बांधल आयुष्यवडे जेटला काल पर्यंत जीव वर्ते छे तेटला काल | सुधी रहे छे. २,
मृत्युनो जे समय ते मरणकाल, आ पण अद्धासमय विशेष ज छे, अथवा मरणविशिष्ट काल ते मरणकाल अथवा मरण ज काल छ, केमके ते कालनो पर्यायवाचक शब्द छे. कर्जा छे केकालोति मयं मरणं जहेहमरणंगओत्ति कालगओ। तम्हासकालकालो, जोजस्स मओमरणकालो।५९।।
'काल' शब्द मरणवाचक छे, जेम अहीं मरणगत विने कालगत कहेवाय छे, तेथी प्राणीना जे मरणनो काल (समय)
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