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भीस्थानास्त्र सानुवाद ।। ३७४॥
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ते *काल-काल कहेल छे. अद्धा ज काल त अद्धाकाल. 'काल' शब्द तो xवर्ण अने प्रमाणकाल विगेरेमा वर्ने छे, तेथी अद्धा शब्दबडे विशेष करेल छे, आ अद्धाकाल सूर्यनी क्रिया(भ्रमण )विशिष्ट मनुष्य क्षेत्रनी अंदर वर्ततो समयादिरूप जाणवो. भाष्यमां कधु के केसुरकिरियाधिसिहो, गोदोहाइकिरियासु निरवेक्खो । अद्वाकालो भन्नइ, समयक्खेतमि समयाइ ।६०
मेरुपर्वतनी चौतरफ सूर्यादिना भ्रमगरूप क्रियावडे प्रगट करातो, मनुष्यक्षेत्रमा वर्तनारो समयादिरूप काल ते अदाकाल कहेवाय छे. मनुष्पक्षेत्र सिवाय बीजे स्थले सूर्यादिनी गातक्रिया न होबाथी त्यां अदाकाल कईबातो नथी, केमके त्यां तो वर्तनारूप क्रिया परिणामवाळी होवाथी काल कहेवाय छे. उपरोक्त जे अद्धाकाल ते गायतुं दोहन विगरे क्रियानी अपेक्षा राखतो नथी, परंतु सूर्यादिनी गतिक्रियानी अपेक्षा राखे छ अर्थात् गतिमान् सूर्य पोताना किरणोबडे जेटला क्षेत्रने प्रकाश मान करे तेटला क्षेत्रने दिवस अने ते सिवायना क्षेत्रने रात्रि कहेवाय छे. आ रात्रि के दिवसनो अत्यंत सूक्ष्म अंश ते समय, तेषा असंख्याता समयनी आवलिका विंगरे काल, सूर्यनी गति सिवाय अन्य क्रियानी अपेक्षा राखतो नवी. समयावलियमुहत्ता, दिवसमहोरत्तपक्षमासा य । संवच्छरजुगरलिया, सागरोसपिपरिपहा ॥६॥
* एक काल शब्द मरणवाचक छे अने बीनो काल शब्द वखत-टाईमवाचक छे, ते काल-काल. x जेम कालो वर्ण. + आ आवश्यक नियुक्तिनी ६६३ मो गाथा छे.
४ स्थान काध्ययने उद्देशा
प्रमाण कालादि परिणामः यामा:सू० २६४-६६
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X॥ ३७४।।
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