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| परमात्मानी नालछेदनादि क्रियाने करे छे. विद्युत्कुमारी महत्तरिकाओ तो रुचकनी विदिशामां बसनारीओ छ, ते देवीओ चारे दिशाओमां ऊभी रहीने, हाथमा दीपक ग्रहण करीने जन्म पामेल अरिहंतना गीतो गाय छे. आ देवो संसारमा वसनारा छे, माटे संसारसूत्र कहेल छे. संसरण-अहिंतहिं परिभ्रमण करवू ते संसार, तत्र 'संसार' शब्दना अर्थने जाणनार पण वर्तमानकाले संसार शब्दमां जेनो उपयोग नथी ते द्रव्य संसार, अथवा जीव अने पुद्गललक्षण द्रव्योर्नु यथायोग्य भ्रमण ते द्रव्यसंसार, तेओर्नु ज चौद राजलोकरूप क्षेत्रमा जे परिभ्रमण ते क्षेत्रसंसार, अथवा जे क्षेत्रमा संसारनी व्याख्या कराय छे ते ज क्षेत्र, अभेद उपचार करवाथी क्षेत्रसंसार, जेम रसवाळी गुणनिका(गुगी) इत्यादि. कालस्य-दिवस, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर(वर्ष)लक्षण कालर्नु संसर-चक्रन्यायवडे भमg अथवा कोई पण जीवन नरकादिने विष पल्योपमादि कालविशेषवडे भमवू ते कालसंसार, अथवा पोरसी विगरे जे कालमा संसारनी व्याख्या कराय छे ते कालसंसार कहेवाय छे, अभेद उपचार करवाथी. जेम प्रत्युपेक्षण(पडिलहण) करवाथी काल पण प्रत्युपेक्षण कहेबाय छे. तथा संसार शब्दना अर्थनो जाणनार अने तेमां उपयोगवाळी ते भावसंसार अथवा जीव अने पुद्गल संबंधी द्रव्य संसरण मात्र गौण करायेल छ अथवा औदयिकादि भावोनो अथवा वर्णादिनो संसरणपरिणाम ते भावसंसार छे. (सू० २६१), आ द्रव्यादि संसार अनेक नयोबडे दृष्टिवादमां विचाराय छे तेथी दृष्टिवाद सूत्र कहे छ
चउविहे दिट्ठिवाए पं० -परिकम्म सुत्ताई पुनगए अगुजोगे । सू० २६२, चउबिहे
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