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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद | ॥ ३६८
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चत्तारि दिसाकमारिमहत्तरियाओ पं००-रूया रूयंसा सुरूवा रूयावती, चत्तारि विज्जुकुमारिमहत्तरियाओ पं. २०-चित्ता चित्तकगगा सतेरा सोतानणी । सू० २५९, सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो मज्झिमपरिसाते देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिती पं०, इसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो मज्झिमपरिसाए देवीणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पं०। सू० २६०, चउविहे संसारे पं० तं०-दव्वसंसारे खेत्तसंसारे कालसंसारे भावसंसारे । सू० २६१ ___ मूलार्थ:-दिशाकुमारीनी चार महत्तरिका देवीओ मध्यरुचकनी वसनारी कहेली छे, ते आ प्रमाणे-रूपा, रूपांशा, सुरूपा अने रूपावती. विद्युत्कुमारीनी चार महत्तरिका देवीओ रुचक पर्वतनी विदिशामां बसनारी कहेली छे, ते आ प्रमाण-चित्रा, चित्रकनका, शतेरा अने सौदामिनी. (सू० २५९) शक्र, देवेंद्र, देवना राजाना मध्यम परिषदना देवानी चार पल्योपमनी स्थिति कहेली छे. ईशान, देवेंद्र, देवना राजाना मध्यप परिसदनी देवोनी चार पल्पोपमनो स्थिाने कडेली छे. (सू०२६०) | चार प्रकारे संसार कहेल छ, ते आ प्रमाणे-द्रव्यसंपार, क्षेसंसार, कालसंसार अने भासंपार (सू० १६१)
टीकार्थ:-‘चत्तांरि दिसा' इत्यादि० सूत्र मुगम छे. विशेष ए के-दिशाकुमारीओ एवी अत्यंत श्रेष्ठ देवीओ अथवा दिशाकुमारीओमां महत्तरिका ओ ते दिक्कुमारीमहत्तरिकाओ, रुचकनी मध्य मां रहेनारी आ देवीओ जन्म पामेल अरिहंत
* बाबूवालो प्रतमा सेयसा छे, हस्तलिखित प्रतमा बन्ने पाठ छे.
४ स्थान काध्ययने उद्देशः १ महत्वारिका*देव्यः , देव → स्थिति
संसारभेदश्च सू०२५९
तमा रिकामी ते दिवसाय सुगम छ.गाव काल
X॥३१८॥
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