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श्रीस्थानागपत्र सानुवाद ॥३६७॥
माहेंद्र, लांतक, सहस्रार अने अच्युत इंद्रना लोकपालोना नामो ईशानेंद्र ना लोकपालोनी माफक जाणवा. चार प्रकारना वायुकुमारो पातालकलशाना अधिपति देवो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-काल, महाकाल, वेलंब अने प्रभंजन. (सू० २५६) चार प्रकारना
देवो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-भवनपति, वानव्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक. (सू० २५७) चार प्रकारे प्रमाण कहेला छे, ते | आ प्रमाणे-द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण अने भावप्रमाण (सू० २५८)
टीकार्थः-पुरुषना अधिकारथी ज देवविशेष पुरुषोनुं निरूपण करनार लोकपालादि सूत्रो सुगम छे. विशेष ए के-इंद्र एटले परम ऐश्वर्यना योगी प्रभु अथवा गजेंद्र नी जेम महान्. राजन-दीपतो होवाथी अर्थात् शोभावाळो होवाथी अथवा आराध्य होवाथी राजा, अथवा इंद्र अने राजा एकार्थवाचक छे. दक्षिण दिशाना लोकपालोमा नामथी जे त्रीजो लोकपाल छे ते उत्तर दिशाना लोकपालोमा नामथी चोथो छे अने चोथो छे ते त्रीजो छे. एवी रीते 'एकतरिय 'त्ति० जे नामवाळा शक इंद्रना लोकपालो छे ते नामवाळा ज सनत्कुमार, ब्रह्मलोक, शुक्र अने प्राणतेंद्रना लोकपालो छे, तथा जे नामवाळा ईशानेंद्रना लोकपालो छे ते नामवाळा ज माहेंद्र, लांतक, सहस्रार अने अच्युतेंद्रना लोकपालो छे. कालादि वायुकुमार देवो पातालकलशाना स्वामी छे. (सू०६५६) चार प्रकारना देवो छ (सू०२५७) एम जे कहेल छे ते संख्याप्रमाण छे माटे प्रमाणनी प्ररूपणा करनार सूत्र कहे छे. जे प्रमाण करे छे अथवा जेनावडे पदार्थनिर्णय कराय छे ते प्रमाण, तेमां द्रव्य एज प्रमाण, दंड विगेरे द्रव्यथी अथवा धनुष्य विगेरेथी शरीर प्रमुखनुं प्रमाण अथवा दंड, हस्त अने अंगुल विगेरेथी निर्णय करवो ते द्रव्यप्रमाण, जीवादि द्रव्यर्नु अथवा जीव, धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकाय प्रमुख द्रव्योनुं प्रमाण अथवा परमाणु विगेरे द्रव्यमा पर्यायोनो
४ स्थानकाध्ययने उद्देशः १ लोकपाला, देवा
प्रमाणश्च सू०२५६
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