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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चौथा ान सानुवाद ॥ ३६३ ॥ www.kobatirth.org अर्थात् प्रयोग तेमां मननुं प्रणिधान - आर्त्त, रौद्र, धर्म्म विगेरे स्वरूपवडे प्रयोग ते मनप्रणिधान, एवी रीते वचनप्रणिधान अने कायप्रणिधान पण जाणवु, उपकरण - लौकिक अने लोकोत्तरूप वस्त्र पात्रादि संयम अने असंयमना उपकार माटे प्रणिधानप्रयोग ते उपकरणप्रणिधान छे. 'एव' मिति० जेवी रीते सामान्यथी कां तेम नैरयिकोने पण कहेतुं वळी कहेल चोवीश दंडना मध्ये पण वैमानिक पर्यंत जे पंचेंद्रियो छे संओने पण एवी ज रीते चार प्रणिधानो कहेवा. एकेंद्रियादिने मन विगेरेनो असंभव होवाथी प्रणिधाननो पण असंभव छे, प्रणिधान सुप्रणिधान अने दुष्प्रणिधान एम वे प्रकारना छे माटे ते बँने सूत्रो छे. शोभन-संयमना हेतु वाळं होवाथी सारुं प्रणिधान अर्थात् मन विगेरेनुं प्रयोजन [ प्रवर्त्तात्र ] ते सुप्रणिधान आ सुप्रणिधान चोवीश दंडकना निरूपणमां मनुष्योने छे, तेमां पण संयतोने ज होय छे केम के सुपणिधान चारित्रनी परिणतिरूप होय छे. सूत्रकार कहे छे ' एवं संजये 'त्यादि० दुष्प्रणिधाननुं सूत्र सामान्य सूत्रनी माफक जाणवुं. विशेष ए के दुष्प्रणिधान - असंयम माटे मन विगेरेनो व्यापार करवो ते. ( सू० २५४ ) हवे पुरुषना अधिकारथी बीजी रीते पुरुष संबंधी १४ सूत्रो कहे छे चत्तारि पुरिसजाता पं० तं० - आवातभद्दते णाममेगे णो संवासभद्दते १, संवासभद्दए णाममेगे णो आवातभहए २, एगे आवातभद्दतेवि संवासभद्दतेवि ३, एगे णो, आवायभद्दते नो वा संवासभद्दए ४ (१) चत्तारि पुरिसजाया पं० तं० - अप्पणो नाममेगे वज्जं पासति णो परस्स, परस्स णाममेगे वज्जं पासति ४ (२) चन्तारि पुरिसजाया पं० तं० - अप्पणो णाममेगे वज्जं उदीरेइ णो For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir **** ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः १ आपात भद्र कादि सू०२५५ ॥ ३६३ ॥
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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