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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Si Kailasagarsur Gyarmandie KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX काचा फलनी जेम मधुर अर्थात् थोड़े मधुर ते *आममधुर १, तथा काचुं फल छतां पक्व-पाका फळनी जेम मधुर अर्थात् अत्यंत मधुर २, तथा पक्व फळ छतां काचा फळनी जेम मधुर एटले के पूर्वनी जेम थोडं मधुर ३, तथा पक्व फळ छतां पक्व मधुर अर्थात् पूर्वनी जेम अत्यंत मधुर ४. पुरुष तो आम-वय अने श्रुतथी अव्यक्त (काचो) अने आम मधुर फल समान, केम के अल्प उपशम विगरे लक्षणरूप माधुर्यना भावथी १, वय अने श्रुतथी अव्यक्त ज अने पक्व मधुर फल समान अर्थात् पक्व फळनी जेम मधुर स्वभाव केम के श्रेष्ठ उपशमादि गुण युक्त होवाथी २, तथा अन्य पक्व-वय अने श्रुतथी परिणत अने आम मधुर फल समान केम के उपशमादि माधुर्यन अल्पत्व होवाथी ३, तथा अन्य पक्व तेमज वय अने श्रुतथी पक्व मधुर फल समान, केमके श्रेष्ठ उपशमादि गुण युक्त होवाथी ४ (सू०२५३) हमणां पक्व मधुर कयो ते सत्य गुणना योगी होय छ ए हेतुथी सत्य अने तेव॒ विपर्यय मृपा तथा सत्य-असत्य निमित्तवाळा प्रणिधान प्रत्ये कहेवानी इच्छावाळा सूत्रकार ते ते सूत्रोने कहे छे 'चउबिहे सच्चे' इत्यादीनि कहेल अर्थवाळा आ सूत्रो छे. विशेष एके-ऋजुक-माया रहितनो भाव अथवा कम [कार्य] ते ऋजुकता [सरलता], काथानी ऋजुकता ते कायऋजुकता, एवी रीते वीजा पण जाणवा. विशेष ए के-भाव एटले मन, कायऋजुकता विगेरे शरीर, वाणी अने मननी यथावस्थित अर्थ(यथार्थ)स्वरूपजणाववाने माटे प्रवृत्तिओ छे तथा अजाणपणाथी गाय विगेरेने अश्व विगेरे जे कहे छे अथवा कोईना माटे कईक स्वीकारीने जे करतो नथी ते विसंवादन, तेना विपक्षथी योग-संबंध ते अविसंवादनायोग 'मोसे' ति० मृषा-असत्य, कायानी सरलता नहिं अर्थात् वक्रता इत्यादि वाक्य छे. प्रणिधिः-प्रणिधान *प्रदेशोनो अध्याहार करेल छे. XXXXXXXXXXXXXXXXXXXOXOXOXOXOXXOXOXXXXX For Private and Personal use only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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