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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie परस्स४ (३) अप्पणो नाममेगे वजं उवसामेति णो परस्स ४ (४) चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०अब्भुढेइ नाममेगे णो अब्भुट्ठावेति (५) एवं वंदति णाममेगे णो वंदावेइ (६) एवं सक्कारेइ (७) सम्माणेति (८) पूएइ (९) वाएइ (१०) पडिपुच्छति (११) पुच्छइ (१२) वागरेति (१३) सुत्तधरे 8 णाममेगे णो अत्थधरे अत्थधरे नाममेगे णो सुत्तधरे (१४) सू० २५५ मूलार्थ:-चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईएक पुरुष आपातभद्रक एटले प्रथम मिलापमां मधुर वचनादिवडे सुखकारी पण संवास-घणा कालना वसवाटमां सारो नहिं १, एक पुरुष संवास-घणा कालना वसबाटमा सारो पण आपात-प्रथम मिलापमा सारो नहिं अर्थात् मधुरभाषी नहिं २, एक पुरुष प्रथम मिलापमां पण सारो अने पछी संवासमां पण सारो ३ अने कोईएक पुरुष आपात-प्रथम मिलापमा पण सारो नहिं तथा पछी पण सारो नहिं ४ (१) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईएक पुरुष पोताना पापकर्म(दोष)ने जुए छे परंतु बीजाना पापकर्म(दोष)ने जोतो नथी १, कोई एक पुरुष बीजाना दोषने देखे छे परंतु पोताना दोषने जोतो नथी २, कोई एक पुरुष पोताना अने पारका दोषने जुए छे ३ अने कोई एक पुरुष पोताना के पारका दोषने जोतो नथी ४ (२) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईएक पुरुष पोताना पापने वीजा पासे कहे छे परंतु बीजाना पापने कहेतो नथी १, कोईएक पुरुष बीजाना पाप( दोष)ने कहे छे परंतु पोताना दोषने कहे तो नथी २, कोईएक पुरुष पोताना अने पारका दोषने कहे छे ३ अने कोईएक पुरुष पोताना के पारका दोषने Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxy xxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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