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पडिमातो पं० त०-खुड्डिया मोयपडिमा महल्लिया मोयपडिमा जवमज्झा वइरमज्झा। सू० २५१४
मलार्थ:-जीवो चार कारणवडे आठ कर्मप्रकृतिओने एकत्र करता हता, ते आ प्रमाणे-क्रोधवडे, मानवडे, मायावडे आने लोभवडे, एवीरीते यावत् वैमानिको पर्यंत जाणवू अर्थात् २४ दंडकमा एम जाणवू. एवी रीते आ दंडक एकत्र करे छे, एमज आ दंडक भविष्यमा एकठा करशे ए आलापकवडे त्रण दंडको कहेवा. एवी रीते उपचयन-कमदलना निषेकनी रचना करेल छ, करे छ अने करश. बधिल छे-निकाचित करेल छे, करे छे अने करशे. उदीरणा करेल छ, को अनेको भोगवेल छ, भोगवे छे अने भोगवशे. निजरेल छ, निजैरे छे अने निर्जरशे-आत्मप्रदेशथी दूर करशे यावत् वैमानिक पर्यत एम जाणवं, एम एकेक पदमां त्रण त्रण दंडक-पाठ कहेवा यावत् निर्जरा करशे त्यां सुधी. (सू० २५०) चार पडिमाओ कडेली छे, ते आ प्रमाणे-समाधिपडिमा-श्रुतचारित्रनी समाधि, उपधानप्रतिमा-तपविशेष, विवेकपडिमा-अशुद्ध भातपाणी विगेरेना त्यागरूप अने व्युत्सर्गपडिमा-कायोत्सर्गरूप. वळी चार प्रतिमाओ कहे छे, ते आ प्रमाणे-भद्र प्रतिमाचार दिशाए मळीने सोळ प्रहरना कायोत्सर्गरूप,सुभद्रा पण प्राय: भद्रानी माफक छे, महाभद्रा-चार दिशाए आठ आठ प्रहर कायोत्सर्ग करवारूप, सर्वतोभद्रा-दश दिशाओमां एकेक अहोरात्र कायोत्सर्गरूप. वळी चार प्रतिमाओ कहेली छे, ते आ प्रमाणे-लघु मोकपडिमा सोळ भक्ते पूर्ण थाय, मोटी मोकपडिमा अढार भक्ते पूरी थाय, यवमध्या-आदि, अंतमां कवळनी हानि अने मध्यमा वृद्धिरूप, वज्रमध्या-आदि-अंतमां कवळनी वृद्धि अने मध्यमां-हानिरूप.
*प्रतिमाओनु स्वरूप बोजा ठाणाना त्रीजा उद्देशामां कहेबाई गयेल छे.
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