SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानानपत्र सानुवाद ३५९॥ ४ स्थान| काध्ययने | उद्देशः१ कर्मचयादि प्रतिमाश्च सू०२५० अर्थात क्रोधना विपाक(फळ,ने जाणतो थको रोष करे छे, जे क्रोधादिना फळने न जाणतो थको रोष करे छे ते अनाभोगनिवर्शित, उदय अवस्थान प्राप्त न थयेल क्रोध ते उपशांत, तेनो प्रतिपक्ष एटले उदयमां आवेल कोप ते अनुपशांत. एकद्वियादि(असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्यत )ने आभोगनिवर्तित क्रोध, संज्ञीना पूर्वभवनी अपेक्षाए कहेल छे. अनाभोगनिवर्तित क्रोध तो वर्तमान भवनी अपेक्षाए पण छे. नारकादिकने विशिष्ट उदयना अभावथी उपशांत क्रोध छे. अनुपशांत क्रोध शब्द माटे विचारवा जेवू नथी. अथवा ते सर्व दंडकमां उदयरूप होय छे. एवी रीते मानादिकवडे दंडक त्रण कहेवा. (मू० २४९) हवे कषायोनां जत्रण काल संबंधी फलविशेषो कहेवाय छे जीवा णं चउहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिंसु तं०-कोहणं माणेणं मायाए लोभेणं, एवं जाव वेमाणियाणं २४. एवं चिणंति एस दंडओ, एवं चिणिस्संति एस दंडओ, एवमेतेणं तिन्नि दंडगा, एवं उवचिणिंसु उवचिणंति उवचिणिस्संति, बंधिसु ३ उदीरिस ३ वेदेसु ३ निजरेंसु णिजति निजरिस्संति, जाव वेमाणियाणं, एवमेकेके पदे तिन्नि २ दंडगा भाणियव्वा, जाव निजरिरसंति । सु. २५०. चत्तारि पडिमाओ पं० तं०-समाहिपडिमा उवहाणपडिमा विवेगपडिमा विउस्सग्गपडिमा, चत्तारि पडिमाओ पं० तं०-भद्दा सुभद्दा महाभदा सव्वतोभद्दा, चत्तारि IMAKAXXXXXXXXXX (MOXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ३५९॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy