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कषायोनो क्षयोपशम छते समकितनो लाभ होय छ जेथी अनंतानुबंधी कषायोनो उदय होते छत मिथ्यात्व क्षयोपशमने पामतो नधी अने क्षयोपशमना अभावथी सम्यक्त्व थतुं नथी. वळी मतांतरमांजे सप्तविध सम्यग्दर्शनमोहनीय कहेल छे, ते सम्यक्त्वना साहचर्यवडे उपशम विगेरे गुणोमां सम्यक्त्वनो उपचार करवाथी, अर्थात् चारित्रना अंशरूप उपशमादि गुणोने विषे सम्यक्त्व कह्यु छ, एम अमे मानीए छीए. अणुव्रतादिरूप प्रत्याख्यान जेने विषे विद्यमान नथी ते अप्रत्याख्यान कषाय, ते देशविरतिने आवरण करनार छे. मर्यादावडे सर्वविरतिपणाने जे आवरण करे छे ते प्रत्याख्यानावरण कषाय. सर्व सावधनी विरतिने पण संज्वलन करे छ, तपावे छ अर्थात् अतिचार दोषने करावे छे, अथवा इंद्रियना विषपनी प्राप्तिने विषे प्रदीप्त थाय छे ते संज्वलन कषाय, ते यथाख्यात चारित्रनुं आवरण करनार छे. एवी रीते मान, माया अने लोभने विषे पण अनंतानुबंधी विगैरे चार भेद कहेवा. आ चारेनी निरुक्ति पूज्यपुरुषोए नीचे प्रमाणे कहेली छे वृद्धिने वास्ते अर्थात् जन्मनी परंपरा माटे जे अनंत जन्मोनो अनुबंध करे छे तेथी प्रथम क्रोधादिना भेदमा 'अनंतानुबंधी संज्ञा बतावी छ (१) प्रस्तुत विषयमा क्रोधादिना उदयथी प्राणी अल्प पण प्रत्याख्यानने इच्छे नहि-स्वीकारे नहि, तेथी बीजा प्रकारना कषायोमा 'अप्रत्याख्यान' संज्ञा बतावी छे. (२) सर्व सावधनी विरतिरूप प्रत्याख्यान कहेल छे, तेना आवरणनी संज्ञा अर्थात् 'प्रत्याख्यानावरण एवं नाम त्रीजा प्रकारना कषायोमा राखेल छे. (३) अने शब्दादि विषयोने मेळवीने वारंवार प्रदीप्त करे छे ते 'संज्वलन' नाम चोथा प्रकारना कपायोमां | कहेवाय छे. (४) एवी रीते मानादिकथी त्रण दंडक कहेवा-'आभोगणिवत्तिए 'त्ति ज्ञानपूर्वक थयेल ते आभोगनिवर्तित
* आचारांगसूत्रनो टोकामां सप्तविध दर्शनमोहनीय अने एकवोश प्रकारे चारित्रमोहनीय कहेल छे.
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