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बाळो छ एम मानवं-जाणवू, अथवा जेनावडे मनाय छे ते मान, तथा मान-हिंसा, वंचन (ठग) एवो अर्थ छे. जेनी द्वारा ठगे छे ते माया, तथा लोभन-वस्तुनी इच्छा अथवा जेनाद्वारा लुब्ध थाय छे ते लोभ. 'एव'मिति० जेम सामान्यथी चार कषायो कह्या छे तेम विशेषथी नारकोने, असुरोने यावत् चोवीशमा पदमां वैमानिकोने पण चार चार कषायो होय छे. 'चउप्पइदिए'त्ति. चारमा स्व, पर, तदुभय-स्वपर अने तेना अभावमा प्रतिष्ठित-रहेल ते चतुःप्रतिष्ठित. तेमां 'आयपइट्ठिएति. पोताना अपराधबडे पोताना विषयमा ऐहिक अने पारलौकिक दोषने जोवाथी जे क्रोध उत्पन्न थाय छे ते आत्मप्रतिष्ठित क्रोध, अन्यवडे आक्रोश-गाळीप्रदान प्रमुखथी उदीरणा करायेल अथवा बीजाना विषयवाळो ते परप्रतिष्ठित, पोताना अने अन्यना निमित्तवाळो ते उभयप्रतिष्ठित, आक्रोशादि कारणनी अपेक्षा सिवाय, केवळ क्रोधमोहनीयना उदयथी जे क्रोध थाय छे ते अप्रतिष्ठित. कां छ के-'फळना अनुभवोमा कर्मों, आपेक्ष अने निरपेक्ष छे.' जेम आयुष्यकर्म, सोपक्रम अने निरुपक्रम कहेल छे तेम फळना अनुभवोमां को अपेक्षा सहित अने अपेक्षा रहित होय छे. वळी आ चोथो भेद जीवने विषे रहेल छ, तथापि स्व-पर विगेरेना विषयमा (कारणवडे) उत्पन्न न थवाथी अप्रतिष्ठित कहेल छे, परंतु सर्वथा अप्रतिष्ठित नथी, केमके चार प्रतिष्ठितपणाना अभावनो प्रसंग आवी जाय. क्रोधर्नु आत्मादि प्रतिष्ठितपणुं, एकेंद्रिय अने विकलेंद्रियोने जे कहेल छे ते पूर्वभवने विषे ते परिणामपरिणत मरणबडे उत्पन्न थयेलाने आत्मादिप्रतिष्ठितपणुं होय छे. एवी रीते मान, माया अने लोभवडे पण अन्य दंडक त्रणर्नु स्त्र कहेवं. नारक विगेरेनु क्षेत्र पोतपोताना उत्पतिस्थानने आश्रर्याने, एम वस्तु-सचित्तादि पदार्थ अथवा वास्तु-घर, खराब आकारवालं शरीर, जे जेर्नु उपकरण ते उपधि, एकेंद्रियोने उपधि भवांतरनी अपेक्षाए जाणवी, एवी रीते मान, मायादिक त्रण सूत्र
MAARAK XXXXXXXXX
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