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स्थानने आश्रयीने, २ वस्तु - सचित्तादि पदार्थ अथवा घरने आश्रयीने, ३ शरीर-खराब स्थितिवाळं अथवा कद्रूपाने आश्रयीने अने ४ उपधि-उपकरणने आश्रयीने उत्पन्न थाय छे. आ रीते नैरयिकोने अने यावत् वैमानिकाने चार कारणोवडे क्रोधनी उत्पत्ति थाय छे. एवी ज रीते मान, माया अने लोभ पण चार कारणोवडे थाय छे. ते वैमानिको पर्यंत चोवीस दंडकमां जाणवा. चार प्रकारे क्रोध कहेल छे, ते आ प्रमाणे १ अनंतानुबंधी क्रोध, ते पर्वतनी रेखा ( फाट) सरखो, २ अप्रत्याख्यानी क्रोध, ते पृथ्वीनी फाट सरखो, ३ प्रत्याख्यानी क्रोध, ते रेतीनी रेखा सरखो अने ४ संज्वलन क्रोध, ते जलनी रेखा सरखो. ए प्रमाणे नैरयिकने यावत् वैमानिकाने चार प्रकारनो क्रोध कहेल छे. एवी रीते मान, माया अने लोभ वैमानिक पर्यंत चोवीश दंडकमां चार प्रकारे होय छे. चार प्रकारे क्रोध कहेल छे, ते आ प्रमागे १ आभोगनिवर्तित-क्रोधना फळने जाणता छतां पण क्रोध करवो ते, २ अनाभोगनिवर्तित-क्रोधना फलने नहि जाणतां छतां क्रोध करो ते, ३ उपशांत-उदय अवस्थामा नहि आवेल क्रोध अने ४ अनुपशांत-उद्यमां आवेल क्रोध. एवी रीते चार प्रकारनो क्रोध नैरविकने यावत् वैमानिकाने होय छे. एवीज रीते चार प्रकारे मान, माया अने लोभ यावत् वैमानिक पर्यंत चोवीस दंडकमां होय छे. (सू० २४९)
टीकार्य :- स्थितिः - क्रम, मनुष्यनी स्थिति माफक देवोमां पण राजा, प्रधान विगेरेनी मर्यादा छे. देव सामान्य मात्र, 'नामे' ति० शब्द वाक्यालंकारमां छे. कोईएक देव स्नातक (प्रधान), देव पोते ज स्नातक अथवा देवोनो स्नातक, एवो समास करवो. एवी रीते बाकीना वे भेदमां पण समास करवो. विशेष ए के पुरोहित एटले शांति कर्म करनार, 'पञ्चलणे'त्ति० मागधभाट-चारणनी जेम प्रशंसा करवाथी बीजा देवोने प्रज्वलन करे-तेजस्वी करे ते प्रज्वलन. देवनी स्थितिना प्रसंगथी देवना विशेषभूत
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