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वितर्क-पूर्वगतश्रुतना आश्रयवाळो व्यंजन-शब्दरूप अथवा अर्थरूप छे जे जीवने ते एकत्ववितर्क, तथा अर्थ के व्यंजनने विषे कोई एकमांथी बीजामां विचार-गमन विद्यमान नथी तथा मन विगेरे कोई एक योगमांथी बीजा योगमां, वायु वगरना गृहमा रहेल दीपकनी जेम, संचरण ( गमन ) लक्षण नथी जेने ते अविचारी पूर्वनी माफक जाणवू. कथु छ केजं पुण सुनिप्पकंपं, निवायसरणप्पईवमिव चित्तं । उप्पायठिइभंगाइयाणमेगंमि पज्जाए ॥१९॥ अवियारमत्थवंजणजोगतरओ तयं बिइयसुक्कं । पुव्वगयसुयालंबण-मेगत्तवियक्कमवियारं ॥२०॥ भावार्थ उपर कह्या मुजब छे.
आ एकत्ववितर्कअविचारी नामनो बीजो भेद. तथा 'सुहमकिरिए ति. निर्वाणना गमनसमयमा मनोयोग अने वचनयोगनो निरोध करेल छे अने काययोगनो अर्ध निरोध करेल छे एवा केवलज्ञानीने सूक्ष्मक्रियाअनिवृत्ति ध्यान होय छे, तेथी काया संबंधी उच्छ्वासादि सूक्ष्म क्रिया छे जेने विषे ते सूक्ष्मक्रिय, ते अनिवृत्ति स्वभाववालुं छे केम के अत्यंत प्रवर्धमान | परिणाम होय छे. वळी कह्यु छ केनिव्वाणगमणकाले, केवलिणो दरनिरुद्धजोगस्स। सुहुमकिरियाऽनियटिं, तइयं तणुकायकिरियस्स॥२१॥
भावार्थ जणाच्या मुजब छे. आ बीजो भेद.
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