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मीस्थानागपत्र
बानुबाद
॥५४७॥
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नाचते छते नीचे पडवू. (२) चार प्रकारे गेय-गायन कहेल छे, ते आ प्रमाणे-उक्षिप्त-प्रथमथी प्रारंभ करातुं गायन, पत्रकछंद विगेरे चार भागरूप पदवडे बांधेलु, मंद-मध्यभागमां मूर्च्छनादि गुणयुक्तपणाए मंद मंद घोलनात्मक अने कहेल लक्षणयुक्तपणाए भावित छे छेडो जेनो ते रोचितावसान अर्थात् धीमे धीमे स्वरनी वृद्धि करवारूप. (३) चार प्रकार माल्य-पुष्पनी रचना कहेल छे, ते आ प्रमाणे-ग्रंथिम-सूत्रवडे गूंथेल पुष्पनी मालादि, वष्टिम-पुष्पना वीटनवडे बनावेल, पूरिम-मुकुटादि पूरवावडे थयेल अर्थात् जे पुष्पोवडे पूराय छे ते अने संघातिम-जे परस्पर पुष्पनालना संघात-मळवाथी बने छे ते. (४) चार प्रकारे अलंकार कहेल छे, ते आ प्रमाणे-केशवडे करीने पुरुष शोभे छे ते केशालंकार. एम वस्खालंकार, माल्यालंकार अने आभरणालंकार जाणवा.(५) चार प्रकारे अभिनय-भावने बतावनार चेष्टाविशेष कहेल छे, ते आ प्रमाणे-दार्शतिक, पांडुसुत, सामंतोवाचनीक अने लोकमध्यावसान. (६) (सू० ३७४ ) सनत्कुमार अने माहेंद्रकल्पने विषे विमानो चार वर्णवाळा कहेला
छे, ते आ प्रमाणे-नीला, राता, पीळा अने धोळा. महाशुक्र तथा सहस्रार नामना देवलोकने विषे देवोना भवधारणीय शरीरो | उत्कृष्टथी चार हाथनी ऊंचाईवाळा कहेला छे. (सू० ३७५)
टीकार्थः-'चत्तारि धम्मे' त्यादि० चारित्रलक्षण धर्मना चार द्वारो-उपायो कहेल छे. (मू० ३७२ ) क्षमा विगेरे धर्मना द्वारो छ एम का, हवे नारकत्वादिना साधनरूप आरंभादि कर्मना द्वारो छे ते विभागथी 'चउहिं ठाणेहिं' इत्यादि सूत्रचतुष्टयवेड कहे छे. आ सूत्र सुगम छे. विशेष ए के-'नेरइयत्ताए' त्ति०-नैरयिकपणा माटे अथवा नैरयिकपणाए कर्म-आयुष्कादि. ' नेरइयाउयत्ताए' त्ति आ पाठांतरने विषे नैरयिकायुष्करूप कर्मदलिक( ने बांधे छ ). महान्
४ स्थान काध्ययन उद्देशः। धर्मद्वारायु. हतुवाद्यादिविमानव
दि सू० ३७२-७५
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