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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XXX लोगमब्भावसिते ६। सू० ३७४, सणंकुमारमाहिदे सुणं कप्पेसु विमाणा चउवन्ना पं० तं०-णीला लोहिता हालिद्दा सुकिला, महासुक्कसहस्सारेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिजा सरीरगा उक्कोसेणं चत्तारि रयणीओ उढे उच्चत्तेणं पन्नत्ता। सू० ३७५ ___ मूलार्थ:-धर्मना चार द्वारो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-क्षमा, निर्लोभता, सरलता अने मार्दवता. (सू० ३७२) चार कारण. वडे जीवो नैरयिकपणाना आयुष्कादि कर्मने बांधे छे, ते आ प्रमाणे-महान् आरंभ करवाथी, महान् परिग्रह धारण करवाथी, पंचद्रियना वधथी अने मांसाहार करवाथी. (१) चार कारणवडे जीवो तिर्यंचयोनिकपणाना आयुष्कादि कर्मने बांध छे, ते आ प्रमाणे-मननी कुटिलताथी, बीजाने ठगवा माटे कायानी जुदी रीते चेष्टा करवाथी, अलिक( जूटुं) बोलवाथी अने खोटा तोल अने मापबडे व्यवहार करवाथी. (२) चार कारणवडे जीवो मनुष्यपणाना आयुष्कादि कर्मने बांधे छे, ते आ प्रमाणेसरल स्वभावथी, विनीत स्वभावथी, दयाळूपणाथी अने मत्सर रहितपणाथी. (३) चार कारणवडे जीवो देवपणाना आयुष्कादि कर्मने बांधे छे, ते आ प्रमाणे-सराग संयमथी, देशविरतिपणाथी, बालतपरूप क्रियाथी अने अकाम निर्जराथी. (४) (सू० ३७३ ) चार प्रकारे वाद्य-वाजिंत्र कहेल छे, ते आ प्रमाणे-तत-वीणा विगरे, वितत-ढोल प्रमुख, घन-कांस्यतालााद अने शुपिर-वांसली विगेरे. (१) चार प्रकारे नाट्य(नाटक) कहेल छे, ते आ प्रमाणे-अंचित-रहीरहीने नाचवू, रिभित-गीत सहित पदनी संज्ञावडे नाचवू, आरभड-नाचते छते पंक्तिना अभिप्रायने हस्तादिद्वारा बतावतां थकां बोलवू. अने भिसोल KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX XXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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