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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भौस्थानागपत्र बानुवाद ॥५४५॥ toxxXXXXXXXXXXXxxxxxxxxxxxxx सूचक आकार(वेष)वडे मुक्तरूप-यतिनी माफक, आ एक, बीजो साधुना वेषथी विपरीत होवाथी अमुक्तरूप, गृहस्थावस्थामा (बे वर्ष) रहेल श्री महावीर भगवंतनी जेम, त्रीजो आसक्ति सहित होवाथी अमुक्त-शठ यतिनी जेम, चोथा गृहस्थ. (४) (मु०३६६) जीवना अधिकारवाळा पंचेंद्रियतिर्यच अने मनुष्य संबंधी चे सूत्र सुगम छे. एम बेइंद्रिय संबंधी चे सूत्र सुगम छे. (सू०३६७) विशेष ए के-बेइंद्रिय जीवो प्रत्ये आरंभ नहि करनार नाश नहि करनारने जिह्वानो विकार ते जिह्वामय, तस्मात् सौख्यात्-रसना अनुभवमय आनंदरूप सौख्यथी नाश नहि करनार तथा जिहेंद्रियनी हानिरूप दुःखवडे नहि जोडनार थाय छे. (सू०३६८) जीवना अधिकारथी ज सम्यग्दृष्टि जीवोना क्रियास्त्रो छे ते सुगम छे. विशेष ए के-सम्यग्दृष्टि जीवोने मिथ्यात्वक्रियानो अभाव होवाथी चार क्रियाओ छे. ' एवं विगलिंदियवजं' ति. एकेंद्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अने चतुर्गिद्रिय जीवोने पांच क्रियाओ छे; कारण के तेओने मिथ्यादृष्टिपणुं होय छे. द्वीन्द्रिय विंगरेने सासादन (पतनशील ) सम्यक्त्वना अल्पत्वने लईने तेनी विवक्षा नथी करी. एवी रीते अहिं विकलेंद्रियना वर्जनबडे सोळ क्रियासूत्रो थाय छे. (स० ३६९) अनंतर क्रियाओ कही, कियावाळो अन्यना सद्भूत-छता गुणो प्रत्ये नाश करे छे अने अवगुणांनो प्रकाश करे छे माटे आ अर्थवाळा ये पत्र छे ते सुगम छे. विशेष ए के-सतः-अन्यना विद्यमान गुणोने नाश करवानी माफक नाश करे छे-अपलाप करे छे. मानतो नथी क्रोध-रोषवडे, तथा प्रतिनिवेश-"आ पूजाय छे, हुं तो पूजातो नथी" एम परनी पूजाने सहन न करवावडे ( मात्सर्यथी) तेमज बीजाए करेल उपकारने जे जाणतो नथी ते अकृतज्ञ. तेना भावरूप अकृतज्ञतावडे अने मिथ्यात्वाभिनिवेशबोधना विपर्यासवडे. कयु छ के ४ स्थान काध्ययने उद्देशः४ मित्रपञ्चेन्द्रियनरगत्या गतिद्वींद्रियासंयमेतरसम्यग्दृष्टिक्रिया गुण४| नाशतनू त्पादाः सू० ४३६६-७१ ५४५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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