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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥३४९॥ xxxxxx ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः १ ध्यानानि सू०२४७ Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx थाय-'कई रीते आनो वियोग थाय अने भावष्यमां पण एनो संयोग न थाओ' एम अनुस्मरण करे ते प्रथम भेद. तह सूलसीसरोगाइ-वेयणाए विओगपणिहाणं । तयसंपओगचिंता, तप्पडियाराउलमणस्स ॥ ७॥ ___ शूलरोग अने मस्तकना रोग विगैरेनी पीडाना वियोगर्नु दृढ चिंतन अने भविष्यमा रोग न थाओ एवी विचारणारूप जे ध्यान ते, रोगना प्रतिकार-निवारण करवामां व्याकुळ मनवाळाने होय छे, आ बीजो भेद. इट्ठाणं विसयाईण, वेयणाए य रागरत्तरस । अविओगज्झवसाणं, तह संजोगाभिलासो य ॥ ८॥ इष्ट विषयादि भोगववामां रागवडे आसक्त थयेलने तेनो वियोग न थवानो अध्यवसाय अने तेना संयोगना अभिलाष-| रूप ध्यान होय छे, आ त्रीजो भेद. देविंदचक्कवहित्तणाइगुणरिद्धिपत्थणामइअं । अहमं नियाणचिंतण-मन्नाणाणुगयमच्चतं ॥९॥ देवेंद्र अने चक्रवर्तीत्व विगेरेना गुण( रूपादि ) अने ऋद्धि( विभृति )नी प्रार्थनारूप अधम निदान(नियाणा )नुं चिंतन, ते अत्यंत अज्ञानथी थयेलं होय छे. आ चोथो भेद. हवे आर्तध्याननां लक्षणो कहे छे-चित्तनी वृत्तिरूप होवाथी परोक्ष छतां पण जेनावडे आर्तध्यान निर्णय कराय छे ते लक्षणो, तेमां ? क्रंदनता-मोटा शब्दवडे आरडवु-रो, २ शोचनता-दीनपणुं, ३ तेपनता-तिए धातुनो क्षरण ( खरी जq ) | अर्थ होवाथी आंसुर्नु खरवू, अने ४ परिदेवनता-वारंवार खेदपूर्वक बोलवू. आ जणावेल क्रंदनतादि इष्टवियोग, अनिष्टसंयोग अने RX ॥३४९। KAR For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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