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रोगनी पीडाथी थयेल शोकरूप आतध्यानना लक्षणो छे. कयुं छे के
तस्सकंदणसोयण-परिदेवणताडणाई लिंगाई । इटाणिद्ववियोगा-वियोगवियणानिमित्ताई ॥१०॥ । प्रायः उक्तार्थ छे. अन्य निदानना अने बीजाओना लक्षणो कहे छे. कयु छ केनिंदइ निययकयाइं, पसंसइ सविम्हओ विभूईओ। पत्थेइ तासु रजइ, तयजणपरायण होइ ॥११॥
पोताना करेला कार्यना अल्प फळोने निंदे छे, बीजानी विभूतिओने आश्चर्य सहित प्रशंसे छे, प्रार्थना करे छे अने प्राप्त | थयेल ऋद्धिओमां रागवाळो थाय छे. वळी तेने मेळववामा तत्पर थाय छे. * हवे रौद्रध्यानना भेदो कहेवाय छे-हिंसा एटले विविध वधबंधनादिवडे प्राणीओने पीडा प्रत्ये अनुबध्नाति-निरंतर प्रवृत्त
करे छे एवा स्वभाववाल्लं जे प्रणिधान-दृढ अध्यवसाय अथवा हिंसानो अनुबंध छे जेमा ते हिंसानुबंधी रौद्रध्यान, आ प्रक्रम छे. कड्युं छे केसत्तवहवेहबंधण-डहणंकणमारणाइपणिहाणं। अइकोहग्गहगत्थं, णिग्घिणमणसोऽहमविवागं ॥१२॥ __ प्राणीओनो वध करवो, वींधवं, बंधन, बाळg, अंकन-चिह्न करवु (आंकवु) अने मार विगेरेमा अति क्रोधरूप ग्रहथी ग्रहण करायेल जे दृढ अध्यवसायरूप रौद्रध्यान निर्दय मनवाळाने होय छे अने ते अधम (नरकादि) फलवाडं थाय छे.
तथा मृषा-पिशुन, असभ्य, असद्भूत (अछतुं) विगरे वचनना भेदोवडे असत्यना अनुबंधने करनार जे ध्यान ते
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