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भीस्थानागपत्र
४ न्यानकाभ्ययने उद्देशः ४ गर्जिताविमेघपुरुषाः सू० ३४६
॥५१२॥
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अने भावनी उत्पत्तिना सत्, असत्, सदसत् अने अवक्तव्यथी कोण जाणे छे ? आ प्रमाणे अज्ञानिक वादीना सडसठ भेद थाय छे ॥ ३ ॥ सुर, नृपति, यति, ज्ञाति, स्थविर, अधम, माता अने पिताने विषे मन, वचन, काया अने दानवडे विनय करवा योग्य छे. आ बैनयिकमतना बत्रीश भेद छे ॥४॥"-ए ज चार समवसरणोने चतुर्विशति दंडकने विषे निरूपण करता थका सूत्रकार कहे छे-'नेरइयाण' मित्यादि० सुगम छे. विशेष ए के-मन सहित होवाथी नारक विगरे पंचेंद्रियोमा आ चारे समवसरणो संभवे छे. 'विगलेंदियवन' ति. एकेंद्रिय, बेइंद्रिय, त्रींद्रिय अने चतुरिंद्रियोने मन न होवाथी तेओने समवसरणो संभवता नथी. (सू० ३४५) पुरुषना अधिकारथी पुरुषविशेष- प्रतिपादन करवा माटे प्रायः दृष्टांत सहित तालीश पुरुषसत्राने ' चत्तारि मेहे ' त्यादि सूत्रोवडे कहे छे
चत्तारि मेहा पं. तं०-गजित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गजित्ता, एगे गजित्तावि वासित्तावि, एगे णो गजित्ता णो वासित्ता४ (१) एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०गजित्ता णाममेगे णो वासित्ता ४ (२) चत्तारि महा पंतं.-गजित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे० ४ (३) एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-गजित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता ४ (४) चत्तारि मेहा पंतं०-वासित्ता णाममेगे णो विज्जयाइत्ता ४(५) एवामेव चत्तारि
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