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पुरिसजाया पं० तं०-वासित्ता णाममेगे णो विज्जुमाइत्ता ४ (६) चत्तारि मेहा पं० तं०-कालवासी णाममेगे णो अकालवासी ४ (७) एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-कालवासी णाममेगे णो अकालवासी ४ (८) चत्तारि मेहा पं० तं-खेत्तवासी णाममेगे णो अखित्तवासी ४ (९) एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं. तं-खेत्तवासी णाममेगे णो अखेत्तवासी ४ (१०) चत्तारि मेहा पं० तं०जणतित्ता णाममेगे णो णिम्मवइत्ता, णिम्मवइत्ता णाममेगे णो जणइत्ता ४ (११) एवामेव चत्तारि अम्मापियरो पं० तं०-जणइत्ता णाममेगे णो णिम्मवइत्ता ४ (१२) चत्तारि मेहा पं० तं०-देसवासी णाममगे णो सव्ववासी ४ (१३) एवामेव चत्तारि रायाणो पं० त०-देसाधिवती णाममेगे णो सव्वाधिवती ४ (१४) सू० ३४६
मूलार्थ:-चार प्रकारना मेघ कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईक मेघ गर्जारव करे छे पण वरसतो नथी, कोईक बरसे छ पण गाजतो नथी, एक गाजे छे अने वरसे छे तथा एक गाजतो नथी ने वरसतो पण नथी. (१) आ दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक पुरुष दानादि कार्यमां गाजे छे-मोटे सादे प्रतिज्ञा करे छे पण दानादि कार्य करतो नथी, २ चीजो दानादि कार्य करे छे पण गाजतो नथी-प्रतिज्ञा करतो नथी, ३ त्रीजो प्रतिज्ञा करे छे अने कार्य पण करे
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