________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
देशनुं परपर्यायोथी विशेषित करवावडे असत्त्व होवाथी अने अन्य ( त्रीजा ) देशनुं स्व-परपर्यायोवडे युगपत् विशेषित घटनुं तेमज कहेवा माटे अशक्यपणाने लईने अवक्तव्य होवाथी ते घटादि द्रव्यनुं सत् असत् अवक्तव्यपणुं छे. अहिं प्रथम, द्वितीय अने चतुर्थ भंग ए त्रणे अखंडित वस्तु ( द्रव्य ) ने आश्रित छे अर्थात् सकलादेशी छे. शेष बीजो, पांचमो, छडा अने सातमो आचार भांगा वस्तुना देशने ( पर्यायने ) आश्रयवाळा कहेला छे. वळी तृतीय भंग पण अखंड वस्तुने आश्रितज छे एम अन्य आचार्योए कल छे, ते आ प्रमाणे- स्वपर्यायो अने परपर्यायोवडे विवक्षित अखंड वस्तुनुं सत् असत्पणुं छे. आ कारणथी ज आचारांगनी टीकामां कहेलं छे के अहिं उत्पत्तिने स्वीकारीने पाछला त्रण विकल्पो संभवता नथी, कारण के पदार्थना अबयवनी अपेक्षा तेमज उत्पत्तिना अवयवनो अभाव होय छे एम अज्ञानिकवादी ओना सडसठ विकल्पो थाय छे. वैनयिकोना बत्री विकल्पो थाय छे, ते आ प्रमाणे जाणवा-१ देव, २ राजा, ३ यति, ४ ज्ञाति, ५ वृद्ध, ६ अधम, ७ माता अने ८ पिता - ए दरेकनुं काया, वाणी, मन अने दानवडे देश, काळने अनुसारे विनय करवो. एवी रीते आ चार भेदो देवादि आठ स्थानाने विषे थाय छे. सर्व मेळवतां वत्रीश थाय छे. चारे वादीओनी सर्व संख्या त्रण सो त्रेशठ थाय छे. पूज्य पुरुषोए कां छे के - " नित्यानित्यात्मक आत्मादि नव पदार्थो, स्वथी अने परथी स्थापेला, काळकृत, नियतिकृत, स्वभावकृत, ईश्वरकृत अने आत्मकृत. आ प्रमाणे एक सो ऐंशी भेद आस्तिक ( क्रियावादी ) मतना थाय छे || १ || पुण्य अने पाप रहित सात पदार्थो स्वrt अने परथी स्थापला १ काळ, २ यदृच्छा. ३ नियति, ४ ईश्वर, ५ स्वभाव अने ६ आत्मकृत नथी- आ प्रमाणे नास्तिक ( अक्रियावादी ) मतना चोराशी भेद छे ||२|| सत् असत् विगेरे सात भेदथी गुणायेल जीवादि नव पदार्थो
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir