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रहित होय छे अथवा प्रविभाजयिता सिद्धांतना अर्थने नय अने उत्सर्गादिवडे विवेचन करनार, अथवा आख्याक - सूत्रानो कनार अने प्रविभावयिता के प्रविभाजयिता ते अर्थने कहेनार. ( ५ ) कोईएक सूत्रार्थनो कहेनार छे, परंतु उंच्छजीविकासंपन्न - एषणा माटे तत्पर नथी. ते दुर्भिक्षादि प्रसंगरूप आपत्तिमां प्राप्त थयेल साधु अथवा संविज्ञपाक्षिक छे. कधुं छे केहोज हु बसणं पत्तो, सरीर दुब्बल्याए असमत्थो । चरणकरणे असुद्धे, सुद्धं मग्गं परुवेजा ॥ १९९ ॥
कोई साधु कष्ट प्राप्त थवाथी अथवा शरीरनी दुर्बलताथी साधुना आचाररूप चरणसितरी अने करणसितरीने पालवामां असमर्थ छे तो पण शुद्ध साधुना मार्गनी प्ररूपणा करे, कारण के शुद्ध प्ररूपकनुं आराधकपणुं होय छे. ओनोऽवि विहारे, कम्मं सिढिलेइ सुलहवोही य । चरणकरणं त्रिसुद्धं उवहंतो तो ॥ २००॥
साधुना आचार पाळवामां असमर्थ छतां पण चरणकरण डे विशुद्ध साधुना मार्गनी प्रशंसा अने प्ररूपणाने करतो थको कर्मने शिथिल करे छे अने सुलभबोधि थाय छे.
बीजो यथाच्छंदक, त्रीजो साधु अने चोथो गृहस्थ विगेरे. पूर्वना सूत्रमां साधुरूष पुरुषना आख्यायक अने एषणा
* अहि फक्त शब्दना अर्थो कहेला ले परंतु भांगा बतावेला नथी, ते अप्रमाणे १ कोई एक सिद्धांतोप्राक छे पत्र नयादि - वडे विवेचक नथी, २ कोई एक विवेचन करनार छे पण प्ररूपक नयो, ३ कोईक उभययुक्त छे तेमज ४ उभयशून्य छे. अथवा १ कोईक सूत्रनो वक्ता छे पण अर्थनो कहेनार नथो, २ सूत्रबक्ता नवी पण अर्थने कहेनार छे, ३ उमय युक्ता छे, ४ उभयशून्य छे.
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