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________________ Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भीस्थानाङ्कन सानुबाद ॥५०९॥ OXXXXXXXXX ४ स्थान काध्ययने उद्देशः४ क्रियाबाद्याः मू० ३४५ rxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxy शुद्धित्वरूप गुणनी विभूषा कही, हवे तेनी समानताथी वृक्षनी विभूषाने कहे छ-'चउबिहे' त्यादि० अथवा पूर्व उच्छजीविकासंपन्न साधुपुरुष कह्यो ते वैक्रिय लब्धिवाळा साधुने तथाप्रकारना प्रयोजनने विषे-वृक्षनी विकुर्वणा करनारने जे प्रकारे तेनी विकुर्वणा थाय ते कहे छ-'चउब्विहे ' त्यादि० स्पष्ट छे. विशेष ए के-'प्रवालतये' ति. नवीन अंकुरपणाए एवो अर्थ छे. (सू० ३४४) आ पूर्वे कहेल आख्यायक विगेरे तीथिको छ, माटे तेओर्नु स्वरूप कहे छ चत्तारि वातिसमोसरणा पं०२०-किरियावादी अकिरियावादी अन्नाणितावादी वेणतियावादी। णेरइयाणं चत्तारि वादिसमोसरणा पं० तं०-किरियावादीजाव वेणतियवादी एवमसुरकुमाराणवि जाव थणियकुमाराणं एवं विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं । सू० ३४५ मूलार्थ:-चार प्रकारना बादीना समवसरणो-विविध मतना मिलापो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ क्रियावादी, तेना | एक सो ऐंशी भेदो छ, २ अक्रियावादी, तेना चोराशी भेदो छे. ३ अज्ञानिकवादी, तेना सडसठ भेदो छे, ४ बैनयिकवादी, तेना वत्रीश भेदो छे. सर्व मळीने त्रण सो वेशठ भेद थाय छे. रयिकोने चार वादीना समवसरणो कहेला छे, ते आ प्रमाणेक्रियावादी यावत् बैनयिकवादी. एम असुरकुमारोना पण चार समवसरणो छे यावत् स्तनितकुमारोना पण चार छे. एवी रीते एकेंद्रिय अने विकलेंद्रियने छोडीने यावत् वैमानिकोना चार वादीना समवसरणो छे. (सू० ३४५) टीकार्थः-वादिनः-तीथिको समवतार थाय छे जेओने विषे ते समवसरणो-विविध मतना मिलापो. तेओना समवस ५०९॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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