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भीस्था-४ माङ्गसूत्र सानुवाद १५०८॥
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अत्यंत श्रेष्ठ के दीक्षा लेवाना समपमा, वळी प्रजम्यामां के विहारना समयमा श्रेष्ठ छे. एवो रोते अन्य ३ भांगा पण जाणवा. (१) कोईक भावथी अत्यंत श्रेष्ठ छ अने द्रव्यथी तो श्रेष्ठ अत्यंत प्रशंसा करवा योग्य छे. आवा प्रकारनी बुद्धि लोकने उत्पन्न करवावडे सदृशक-अन्य श्रेष्ठ पुरुष तुल्य छ पण सर्वथा श्रेष्ठ नबी आ एक, बीनो तो भाषयी श्रेउ छे पण द्रव्यथी अत्यंत पापी छे. आवो रीते लोकने वुद्धि उत्पन्न करवावडे अन्य पारी तुल्य छ, त्रीजो तो भावधी अत्यंत पापी छे पण द्रव्यथी आकारने छुगाववावडे बीजा श्रेष्ठ पुरुष तुल्य छ, चोथो तो सुज्ञात छे. (२) १ कोईक सवृत्तिमाळो होबाथी अत्यंत श्रेष्ठ छे अने पोताना आत्माने श्रेष्ठ माने छ. अथवा लोकोबडे श्रेष्ठ मनाय छे केम के निर्मळ मदनुष्ठानमाळो होय छे. अहिं 'मन्नि जह' त्ति वक्तव्यमा प्राकृतशैलीवडे 'मनई' एम कयु. २ बीजो अत्यंत श्रेष्ठ छे पग पोताना आत्माने विषे अरुचिपरायण होवाथी स्वात्माने अत्यंत पापी माने छे अथवा पूर्वना जाणल तेना दोषद्वारा लोकोबडे ते पापी मनाय छे-दृढप्रहारीनी जेम.त्रीजो मिथ्यात्वादिवड हणायेल होवाथी अत्यंत पापी छे पण स्वात्माने श्रेष्ठ माने छ-कुतीर्थिकनी जेम. ४ अविरतिक होवाथी अत्यंत पापी छे पण सद्बोधवाळो होबाथी स्वात्माने पापी माने छे, अयथा संपत लोकोबडे असंयत मनाय छे. ( ३)१ कोईक भावथी अत्यंत श्रेष्ठ छे अने द्रव्यथी तो किंचित् सदनुष्ठानमाळो होवायी श्रेष्ठ छ एम (लोकाने ) विकल्प उत्पन्न करवावडे बीजा अत्यंत श्रेड तुल्प मनाय छे. मनुष्यबडे श्रन्ट जगाय छ अवधा विभक्तिना परिणामथी अन्य श्रेष्ठ पुरुष समान पोताना आत्माने मान छे. एम बीजा ३ भांगा पण जागा. (४) 'आघवइत्ते'ति०१ कोईएक प्रवचननो प्ररूपक छ पण शासननो प्रभावक नबी, कारण के उदार क्रिया अने प्रतिभादिवडे
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अध्ययने उद्देशः ४ व्याधिचिकित्साचिकित्सक व्रणशल्यश्रेयः पापा ख्यायकादि० मू० ३४२
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