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श्रीस्थानागपत्र सानुवाद
॥५०
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प्रश्ननो उत्तर-मनुष्य जातिनो आशीविष पोताना विषबडे समयक्षेत्र (मनुष्यक्षेत्र) प्रमाणवाळा शरीरने विपवडे परिणत करवा अने शरीरने विदारण करवा समर्थ छे, तेनो शक्तिमात्र आ विषय छ परंतु का नथी, करता नयी अने करशे पण नहि. (सू०३४१) काम्ययने ___टोकार्थः-'चत्तारि पसप्पगे'त्यादेि० आ सूत्रनो अनंतर सूत्र साथे आ प्रमाणे संबंध छ-अनंतर सूत्रमा देवो अने उद्देशः४ देवीओ कह्या, तेओ भोगवाळा अने सुखधाळा होय छे माटे भोगो अने सुखाने आश्रयाने प्रसप्पकना भेडो कहेवाय छे. प्रसपकाः छे, आवा प्रकारना संबंधविशिष्ट आ सूचनी व्याख्या आ प्रमाणे-प्रका-विशेषवडे ' सपन्ति' भोगादिकने माटे एक देशथी
आहार: बीजा देश प्रत्ये जाय छ-संचरे छे अथवा आरंभ अने परिग्रहथी विस्तारने प्राप्त थाय छे ते प्रसप्प को. 'अगुप्पन्नागं' ति.
आशीवि(अहिं द्वितीया विभक्तिना अर्थमां छठी छे.) प्राप्त नाहे थपेल शब्दादिक भोगोने अथवा तेना कारणभूत धन अने स्त्री विगेरेने
पाः सू० 'उप्पाइत्त' त्ति. संपादन करवा माटे, अथवा अनुत्पन्न भोगाने उत्पन्न करतो थको कोई एक 'प्रसपेन्ति'-जाय
४३३९-४१ छे अथवा प्रसर्पक ( जनारो ) थाय छ, भोगादिकनी इच्छावाका प्राणीओ संचरे छे. कयुं छे केधावेइ रोहणं तरइ,सागरंभमइ गिरिनिगुंजेसु । मारेइ बंधवं पि हु,पुरिसो जो होज(इ) धणलुद्धो ॥१९५॥ अडइ बहुं वहइ भरं,सहइछुहं पावमायरइ धि?।। कुलसील जातिपच्चय-ट्ठिई वलोभदुओ चयइ ॥१९६॥
जे मनुष्य धननो लोभी होय छे ते रोहणगिरि प्रत्ये दोडे छे, समुद्र तरे छ, पर्वतनी गुफाओने विवे भटके छे अने भाईने पण मारे छे. बळी घणु ज रखडे छे, भारने वहे छ, क्षुधाने सहे छे, पापने आचरे छे तेमज लोभभां आसक्त अने धृष्ट
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