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मुर्मुर-अर्द्ध बुझायेल अग्नि जेवो अर्थात् घणा काळ सुधी बाळनारो, ३ शीतळ-ठंडीनी पीडा करनारो अने ४ हिमशीतळअत्यंत ठंडी करनारो.तिर्यचोने चार प्रकार आहार कहेल छे,ते आ प्रमाणे-१ कंक पक्षीना आहार जेबो अर्थात दुःखपूर्वक पचे तेवो आहार पण सुखपूर्वक पचे छ, २ बिलना जेवो अर्थात् बिलमां कई पण रेडवामां आवे ते सुखपूर्वक प्रवेश करे छे तेम स्वाद विना गळामा प्रवेश थाय छे. ३ पाणमांसोपम-चंडालना मांस जेवो-दुगंच्छनीय होवाथी दुःखकारक छे अने ४ पुत्रमांसोपमपुत्रना मांस जेवो अर्थात् अत्यंत दुःखकारक छे. मनुष्योने चार प्रकारे आहार कहेल छे, ते आ प्रमाणे--अशन, पान, खादिम अने स्वादिम. देवोने चार प्रकारे आहार कहेल छे, ते आप्रमाणे - शुभ वणवाळो, शुभ गंधवाळो, शुभ रसवाळो अने शुभ स्पर्शवाळो. (सु. ३४०) चार प्रकारे जातिवडे आशीविष कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ वींच्छु जातिनो आशीविष, २ मंडक-देडकानी जातिनो आशीविष, ३ सर्पजातिनो आशीविष अने ४ मनुष्यनी जातिनो आशीविष. प्रश्न-हे भगवन् ! वृश्चिक(वींछु जातिना आशीविषनो विषय केटलो कहेल छ ? उत्तर-वृश्चिक जातिनो आशीविष स्वविषवडे अर्द्ध भरतना प्रमाणवाळा शरीरने विषमय करे अने शरीरने विदारी नाखवा माटे समर्थ थाय छे. विषना अर्थपणाथी शक्तिमात्र छे, परंतु निश्चय पूर्वोक्त शरीरनी प्राप्तिद्वारा विषमय कर्या नथी, करता नथी अने करशे पण नहि. देडकानी जातिना आशीविष संबंधी प्रश्ननो उत्तर-मंडक जातिना आशीविष पोताना विषबडे भरतक्षेत्र प्रमाण शरीरने विषमय करवा माटे समर्थ छे पण कर्या नथी, करता नथी अने करश नहि. सर्पनी जातिना आशीविष संबंधी प्रश्ननो उत्तर-सर्पनी जातिनो आशीविष पोताना विषबडे जंबूद्वीप. प्रमाण शरीरने विषमय करवा माटे समर्थ छ परंतु कर्या नथी, करता नथी अने करशे नहि. मनुष्य जातिना आशीविष संबंधी
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