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भीस्थानाङ्गसूत्र
सानुवाद ॥। ४९९ ।।
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तथा घूमना अस्तिपणाथी अहिं महानस - रसोडानी जेम अनि छे इत्यादि स्व ( पोताना ) भावनुं अनुमान अने कार्य अनुमान प्रथम भंगवडे सूचन करेल छे. तथा २ अभितुं अस्तित्व होवाथी अथवा धूमनुं अस्तित्व होवाथी शीतनो स्पर्श नथी, इत्यादि बिरुद्ध भावनी प्राप्तिरूप अनुमान अने विरुद्ध कार्यनी प्राप्तिरूप अनुमान है. अग्निनुं अथवा धूमनुं अस्तित्व होवाथी शीना स्पर्शथी थयेल दांत, वेणी (केशपाश ) अने रोम ( संवाडा ) नुं कंपन विगेरे महानसनी जेम पुरुषना विकारो नथी, इत्यादि कारणथी विरुद्धनी प्राप्तिनुं अनुमान अने कारणथी विरुद्ध कार्यनी प्राप्तिनुं अनुमान द्वितीयभंगवडे कट्टेल छे. तथा ३ छत्रादिनुं अथवा अग्निनुं नास्तिपणुं होवाथी कोईक *कालादिविशेषमां आतप ( तडको) अथवा शीतनो स्पर्श छे-पहेलां प्राप्त थल प्रदेशने विषे आतप अने शीतस्पर्शनी जेम इत्यादिक विरुद्ध कारणानुपलभअनुमान अने विरुद्धानुपलभअनुमान तृतीय भंगवडे स्वीकारेल छे. तथा जोवानी सामग्री छते घटनी प्राप्तिना अभावपणाथी विवक्षित प्रदेशनी जेम अहिं घट नथी - इत्यादि स्वाभावानुपलब्धि अनुमान. घूमना अभावपणाथी संपूर्ण धूमनो कारणसमूह नथी - अन्य प्रदेशनी जेम, इत्यादि कार्यानुपलब्धिअनुमान. वृक्षना अभावथी शीशमनुं वृक्ष नथी इत्यादि व्यापकानुपलंभअनुमान तथा अग्निना अभावथी धूम नथी इत्यादि कारणानुपलभअनुमान चतुर्थभंगवडे कल छे. आ जैन प्रक्रिया नथी एम कहेतुं नहिं, केमके सर्वत्र जैनदर्शनन अभिमत अन्यथा अनुपपन्नत्वरूप हेतुना लक्षणनुं विद्यमानपणुं छे. ( सू० ३३८ ) हमणा ज हेतु शब्दवडे ज्ञानविशेष कह्यो, | तेना अधिकारथी ज्ञानविशेषनुं निरूपण करवा माटे सूत्रकार कहे छे
* उन्हाळामां छत्रना अभावधी आतपनो अने शीयाळामां अग्निना अभावथी शीतनो स्पर्श छे.
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४ स्थान
काध्ययने
उद्देशः ३
आहरण
भेदाः
सू० ३३८
।।। ४९९ ।।