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चउविहे संखाणे पं० सं०-पडिकम्म १ ववहारे २ रज्जू ३ रासी ४। अहोलोगे णं चत्तारि अंधगारं करेंति, तं०-नरगा णेरइया पावाई कम्माइं असुभा पोग्गला १, तिरियलोगे णं चत्तारि उज्जोतं करेंति, तं०-चंदा सूरा मणि जोती २, उड्डलोगे णं चत्तारि उज्जोतं करेंति, तं०-देवा देवीओ विमाणा आभरणा ३॥ सू० ३३८ ॥ चउट्ठाणस्स ततिओ उद्देसतो समत्तो॥
___ मूलार्थ:-चार प्रकारे गणित कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ परिकर्म-पाटीगणित एक, दश विगेरे, २ व्यवहार-तोल, x माप विगेरे, ३ रज्जु-फूट, गज विगरे अने ४ राशि-त्रिराशि विगरे (१) अधोलोकमां चार वस्तु अंधकार करे छे, ते आ
प्रमाणे-नरकवासो, नैरयिको, पापकर्मो अने अशुभ पुद्गलो (२) तिरछालोकने विषे चार वस्तु उद्योत करे छ, ते आ प्रमाणे-चंद्रो, सूर्यो, मणि अने अग्नि (३) ऊर्ध्वलोकमां चार वस्तु उद्योत करे छे, ते आ प्रमाणे-१ देवो, २ देवीओ, ३ विमानो अने ४ आभरणो (३) (सू० ३३८)
टीकार्थ:-'चउब्विहे ' त्यादि० संख्या कराय छ-जेनावडे गणाय छे ते संख्यान अर्थात् गणित. तेमा संकलना (गोठवण) विगेरे पाटी प्रसिद्ध छे. एम व्यवहार पण मिश्रक व्यवहार विगेरे अनेक प्रकारे छे. रज्जु-रज्जुगणित अर्थात् क्षेत्रगणित. राशि-त्रिराशि, पंचराशि विगेरे (१) रज्जु शब्दथी क्षेत्रगणित कयु, क्षेत्रना संबंधथी त्रण प्रकारे विभाग करायेल लोक
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