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स्थान
भीस्थानागपत्र सानुवाद ॥४९८॥
क्यध्ययने उदेश आहरण
भेदार सू०३३८
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लूटे छे अर्थात् गयेल वस्तुने पाछी वाळे छे ते लूपकहेतु. तेज शाकटिके-गाडावाळाए जेम बीजा धूर्ते तेने शीखव्युं त्यारे ते धूत पासे जईने मान्यु के-मने तर्पणालोडिका आप. त्यारपछी ते धृते पोतानी स्त्रीने कछु के-आने सत्कु (पात्रविशेषबडे) मसळेल पिंड आप. तेम करती थकी-साधुआना पिंडने मसळती एवी तेनी भार्याने ग्रहण करीने ते चालतो थयो अने धूतेने कयु के-आ स्त्री मारी छे केमके सत्कुवडे जे मसळे छ ते तर्पणालोडिका छे अने ते तें ज आपेल हे. कारण के-अस्तित्वनी वृत्तिवडे जीव अने घटने विषे तुं एकत्वनी संभावना करे छे त्यारे सर्व भावोर्नु एकत्व थशे, कारण के सर्व भावोने विपे पण अस्तित्ववृत्तिनी समानता छे, परंतु एम थतुं नथी. अहिं अस्तित्ववृत्तिनी समानता होवाथी आ लूषक हेतु छ, केमके जीव अने घटने विषे अभावनी आपत्तिरूप एकत्वना प्रतिपादक लक्षणने अथवा बीजाए उत्पन्न करेल अनिष्टने लूटेल छे. १. 'अहवे' ति० प्रकारांतरवडे हेतुने जणावनार विकल्प अर्थवाळो ' अथवा ' शब्द छ. 'हिनोति' प्रमेय रूप पदार्थने जे जणावे छे ते अथवा जेनावंडे पदार्थ जणाय छे ते हेतु, अर्थात् प्रमेयनी प्रमिति-निर्णय करवामां जे कारण ते प्रमाण. ते स्व. रूप विगरेना भेदथी चार प्रकारे छे. तेमां' पच्चक्खे' त्ति० अर्थों प्रत्ये जे व्याप्त थाय छे ते अक्ष-आत्मा, ते प्रत्ये जे ज्ञान वते छे ते प्रत्यक्ष ज्ञान छ. निश्चयधी अवधि, मनःपर्याय अने केवळरूप छे. अथवा अक्ष-इंद्रियो प्रत्ये जे ज्ञान वर्त छे ते व्यवहारथी प्रत्यक्ष छ, अने ते चक्षु विगरेथी थयेटु छ. प्रत्यक्षतुं लक्षण कहे छ-" पदार्थर्नु अपरोक्षपणाए ग्रहण करनार जे ज्ञान ते प्रत्यक्ष अने इंद्रियोवडे ग्रहणनी अपेक्षाए बीजुं परोक्ष जाणवं." 'अनु'-लिम(चिह )र्नु दर्शन अने संबंधना अनुस्मरण पछी 'मान'-जे ज्ञान ते २ अनुमान छे, एर्नु लक्षण आ प्रमाणे-“साध्य विना हेतुथी न थनार अने साध्यनो निश्चय करावनार
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