________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
केवी रीते होय ? आवी रीते युक्तिथी तारावडे बतावेल भूलोकनो मध्यभाग थतो नथी.' आ प्रमाणे पक्ष स्थापन कर्यु माटे २ स्थापक हेतु छे. कं छे के लोगस्स मज्झजाणण, थावगहेऊ उदाहरणं " उक्तार्थ छे. धूम होवाथी अहिं अग्नि छे, बळी द्रव्य अने पर्यायथी वस्तु नित्यानित्य छे, ते प्रमाणे प्रतीयमानपणाथी-चोकस थती होवाथी आ ने हेतुनी प्रसिद्ध व्याप्तिवडे काळक्षेप विना साध्यना स्थापनथी स्थापकपणुं छे. तथा 'व्यंस्यति' बीजाने जे व्यामोह [ भ्रम] उत्पन्न करे छे ते शकट अने तीतरने ग्रहण करनार धूर्त्तनी जेम व्यंसक छे. तेनी कथा कहे छे-कोईक पुरुषे रस्ताना मध्यमां मळेल मृत तीतरयुक्त शकट (गाई) वडे नगरमा प्रवेश कर्यो. तेने धूर्ते कां के आ शकटतीतर केम मळे छे ? ते पुरुषे-आ शकट संबंधी तीतर मागे छे एम विचारीने कधुं के "तर्पणालोडिकया" पाणी विगेरेथी मसळेल साधुआवडे मळे छे. त्यारपछी धर्ते साक्षीओने बोलावी तीतर सहित शकटने ग्रहण कर्यु अने कं के' आ बन्ने मारा छे, एणे ज शकटतीतर आपेल छे, में तो शकटसहित तीतर ते शकटतित्तरी ग्रहण करेल छे. आ प्रमाणे बनवाथी गाडावाळो खेद् पाम्यो. कधुं छे के " सा सगडतित्तिरी वंसगंमि हेडंमि होइ णायव्वा" उक्तार्थ छे.. ते आवी रीते- “अस्ति जीवोऽस्ति घटः" जीव छे, घट छे, एम स्वीकार कर्ये छते जीव अने घटने विषे अस्तित्व समानपणाए वर्त्ते छे तेथी ते बन्नेनुं एकपणुं थयुं, अभिन्न शब्दनो विषय होवाथी व्यंसक हेतु. घट शब्दनो विषय घटना स्वरूपनी जेम. वळी अस्तित्व जीवादिमां वर्त्ततुं नथी, तेथी जीवादिनो अभाव थाप, केमके अस्तित्वनो अभाव होवाथी व्यंसक हेतु छे केमके ते प्रतिवादीने व्यामोह करनार छे. तथा 'लूसए' ति० व्यंसकवडे प्राप्त थयेल अनिष्ट अहिं शकटतोतर ' शब्द विभक्त रहित है। वाथो भ्रमजनक छे.
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir