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भीस्था बाइपत्र सानुबाद ॥४९७॥
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अनेकांतिकत्व विगरे दुषणोने प्रगट करवा माटे समर्थ थतो नथी, माटे आ हेतुथी वादीने काळनी यापना थाय छे. अथवा ४ स्थान व्यापिनी प्रतीति न थवावडे व्याप्तिसाधक प्रमाणांतरनी विशेष अपेक्षा सहित होवाथी वादी जल्दीथी साध्यनी प्रतीति करतो काध्ययने नथी. परंत काळक्षेप थाय छे. आ हेतु साध्यनी प्रतीति प्रत्ये विलंब करावनार होवाथी यापक छे. जेम बम्त सच्च छतापणं)। उदेशः३ होवाथी भणिक छ. बौद्धना पक्षमां " सत्चात्" आ हेतु छ, परंतु एम श्रवण मात्रथी कोई अन्य क्षणिकपणा प्रत्ये
आहरणप्रतीति करता नथी. आथी बोद्ध सत्व (छतापो) क्षणिकत्ववडे व्याप्त छ. आ *व्याप्तिने साधवा माटे प्रयत्न करे ले. ते बतावे छ-नामर्नु अर्थक्रियाकारीपणुं ज सच छ अथोत् घट नाम जळाहरण-पाणी लावई विगेरे क्रिया करनार थाय
भेदाः तोज घटमां अर्थक्रियाकारीपणुं छे; अन्यथा वंध्याना पुत्रने पण सत्त्व(छतापणा)नो प्रसंग आवशे. नित्य- एक स्वरूप होवाथी
-सू०३३८ अर्थक्रिया क्रमवडे नहिं थाय, अने योगपद्य-एकी साथे पण नहिं थाय; केम के क्षणांतर( अन्य क्षण )मां अकर्त्तापणानो प्रसंग थशे. आहेतथी अर्थक्रियालक्षणरूप सच्च, अक्षणिकथी निवर्तमान थयुं थकुं क्षणिक ज रहे छे. आवी रीते काळक्षेपबडे साध्य अने साधनने विष काळनी यापना करनार होवाधी 'सच 'लक्षण हेतु यापक छे. ' स्थापयति' व्याप्ति प्रसिद्ध होवाथी काळक्षेप विना पक्षनुं समर्थन करे छे. जेम कोईक धृतं परिव्राजक एम कहे छे के-'लोकना मध्यभागमां आपलं
बाहरवालं थाय छे, ते मध्यभागने हूंज जाणुं छु' एम मायावडे दरेक गाममा भिन्न भिन्न लोकना मध्यभागने प्ररूपतो।x | हतोतेनो निग्रह करवा माटे कोईक श्रावके कह्यु के-'लोकना मध्यभागर्नु एकपणुं होवाथी घणा गामाने विष तेनो संभव * यत् सत् तत् क्षणिकम् ते व्याप्तिः-जे सत् छे ते क्षणिक छे, आ व्याप्ति छे.
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